इस दीवाली पर माटी के,
आओ दीप जलायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
आओ स्वच्छता के नारे को,
दुनिया में साकार करें।
नहीं विदेशी सामानों को,
जीवन में स्वीकार करें।
छोड़ साज-संगीत विदेशी,
अपने साज बजायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
कंकरीट की खेती से,
धरती को हमें बचाना है।
खेतों में श्रम करके हमको,
गेहूँ-धान उगाना है।
अपने खेतों की मेढ़ों पर,
आओ वृक्ष लगायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
मजहब के ठेकेदारों की
बन्द दुकानें अब कर दो।
भारत में भाईचारे की,
चलो भावना को भर दो।
लालन-पालन करने वाली,
माँ की महिमा गायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
असली घर में नकली पौधों
का, अब कोई काम न हो।
कुटिया में महलों में अपने
कहीं छलकते जाम न हो।
बन्द करो मय-खाने, अब
ये
शासन को चेतायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
देव संस्कति को अपनाओ,
दानवता से मुँह मोड़ो।
राम और रहमान एक
हैं
मानवता को मत छोड़ो।
भेद-भाव, अलगाववाद का,
वातावरण मिटायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
दीपमालिका पर दीपों से,
जगमग कुटिया-भवन करें।
मुसलिम पढ़ें नमाज और
सब हिन्दु मिलकर हवन करें।
घर-आँगन को स्वच्छ करें,
पावन परिवेश बनायें हम।।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
|
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बुधवार, 24 अक्टूबर 2018
गीत "चीनी लड़ियाँ-झालर घर में कभी न लायें हम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 25.10.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3135 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद
स्वच्छता अभियान से लेकर पर्यावरण चेतना तक परपंरागत ऑर्गेनिक फार्मिग से स्वदेशी के आवाहन और कड़वी चीनी से छिटकने फुलझड़ियाँ छोड़ने दहकाने वाले चीनी लोगों और उनके दुनियाभर में पसरे फैले सामान से आगाह करती रचना सबरीमाला जैसी प्रायोजित कलह के आलोक में शास्त्रीजी की रचना समसामयिक सन्दर्भों का अतिक्रमण करती हुई बहुत आगे तक मार करती है। पढ़िए आप भी :
जवाब देंहटाएंइस दीवाली पर माटी के,
आओ दीप जलायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
आओ स्वच्छता के नारे को,
दुनिया में साकार करें।
नहीं विदेशी सामानों को,
जीवन में स्वीकार करें।
छोड़ साज-संगीत विदेशी,
अपने साज बजायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
कंकरीट की खेती से,
धरती को हमें बचाना है।
खेतों में श्रम करके हमको,
गेहूँ-धान उगाना है।
अपने खेतों की मेढ़ों पर,
आओ वृक्ष लगायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
मजहब के ठेकेदारों की
बन्द दुकानें अब कर दो।
भारत में भाईचारे की,
चलो भावना को भर दो।
लालन-पालन करने वाली,
माँ की महिमा गायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
असली घर में नकली पौधों
का, अब कोई काम न हो।
कुटिया में महलों में अपने
कहीं छलकते जाम न हो।
बन्द करो मय-खाने, अब ये
शासन को चेतायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
देव संस्कति को अपनाओ,
दानवता से मुँह मोड़ो।
राम और रहमान एक हैं
मानवता को मत छोड़ो।
भेद-भाव, अलगाववाद का,
वातावरण मिटायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
दीपमालिका पर दीपों से,
जगमग कुटिया-भवन करें।
मुसलिम पढ़ें नमाज और
सब हिन्दु मिलकर हवन करें।
घर-आँगन को स्वच्छ करें,
पावन परिवेश बनायें हम।।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
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