महक
रहा है मन का आँगन,
दबी
हुई कस्तूरी होगी।
दिल
की बात नहीं कह पाये,
कुछ
तो बात जरूरी होगी।।
सूरज-चन्दा
जगमग करते,
नीचे
धरती, ऊपर
अम्बर।
आशाओं
पर टिकी ज़िन्दग़ी,
अरमानों
का भरा समन्दर।
कैसे
जाये श्रमिक वहाँ पर,
जहाँ
न कुछ मजदूरी होगी।
कुछ
तो बात जरूरी होगी।।
प्रसारण
भी ठप्प हो गया,
चिट्ठी
की गति मन्द हो गयी।
लेकिन
चर्चा अब भी जारी,
भले
वार्ता बन्द हो गयी।
ऊहापोह
भरे जीवन में,
शायद
कुछ मजबूरी होगी।
कुछ
तो बात जरूरी होगी।।
हर
मुश्किल का समाधान है,
सुख-दुख
का चल रहा चक्र है।
लक्ष्य
दिलाने वाला पथ तो,
कभी
सरल है, कभी
वक्र है।
चरैवेति
को भूल न जाना,
चलने
से कम दूरी होगी।
कुछ
तो बात जरूरी होगी।।
अरमानों
के आसमान का,
ओर
नहीं है, छोर
नहीं है।
दिल
से दिल को राहत होती,
प्रेम-प्रीत
पर जोर नहीं है।
जितना
चाहो उड़ो गगन में,
चाहत
कभी न पूरी होगी।
कुछ
तो बात जरूरी होगी।।
“रूप”-रंग पर गर्व न करना,
नश्वर
काया, नश्वर
माया।
बूढ़ा
बरगद क्लान्त पथिक को,
देता
हरदम शीतल छाया।
साजन
के द्वारा सजनी की,
सजी
माँग सिन्दूरी होगी।
कुछ
तो बात जरूरी होगी।।
|
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रविवार, 7 अक्टूबर 2018
गीत "दिल की बात" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंसच बिना कारण कुछ नहीं होता, कुछ न कुछ बात तो होती ही है
बहुत सुन्दर
“रूप”-रंग पर गर्व न करना,
जवाब देंहटाएंनश्वर काया, नश्वर माया।
बूढ़ा बरगद क्लान्त पथिक को,
देता हरदम शीतल छाया।
वाह ! लाज़वाब मरबे -हवा क्या कहने है तर्ज़े बयाँ के :
झूठे रिश्ते झूठी काया ,
सबको माया ने भरमाया
रोवे तरह दिन तक तिरिया
फ़िर एक नया बटेऊ आया ,
तिरिया को उसने बहकाया ,
माया को कोई समझ न पाया।
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veerujianand.blogspot.com
सुन्दर और मधुर गीत।
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