सन्नाटा है आज वतन में।।
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द्वार कामना से संचित है,
हृदय भावना से वंचित है,
प्यार वासना से रंजित है,
कैसे फूल खिलें उपवन में?
सन्नाटा है आज वतन में।।
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सूरज शीतलता बरसाता,
चन्दा अगन लगाता जाता,
पागल षटपद शोर मचाता,
धूमिल तारे नीलगगन में।
सन्नाटा है आज वतन में।।
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युग केवल अभिलाषा का है,
बिगड़ गया सुर भाषा का है,
जीवन नाम निराशा का है,
कोयल रोती है कानन में।
सन्नाटा है आज वतन में।।
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अंग और प्रत्यंग वही हैं,
पहले जैसे रंग नहीं हैं,
जीने के वो ढंग नहीं हैं,
काँटे उलझे हैं दामन में।
सन्नाटा है आज वतन में।।
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मौसम भी अनुरूप नहीं है,
चमकदार अब धूप नहीं है,
तेजस्वी अब “रूप” नहीं है,
पात झर गये मस्त पवन में।
सन्नाटा है आज वतन में।।
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सोमवार, 30 मार्च 2020
गीत "सन्नाटा है आज वतन में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंचमकदार अब धूप नहीं है,
तेजस्वी अब “रूप” नहीं है,
पात झर गये मस्त पवन में।
सन्नाटा है आज वतन में।।
बहुत सुंदर रचना
साधुवाद 🙏
शानदार प्रस्तुति।
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