जिन्दगी के गीत गाता जा रहा हूँ
साँस की सरगम सुनाता जा रहा हूँ
पाँव बोझिल हैं थकी है पीठ भी
बोझ जीवन का उठाता जा रहा हूँ
मिल गया जो भी नजराना मुझे
शान से उसको लुटाता जा रहा हूँ
उम्र अब कितनी बची है क्या पता
घोंसला फिर भी बनाता जा रहा हूँ
कुछ पुराने साज दामन में समेटे
सादगी से सुर सजाता जा रहा हूँ
है अमावस ज्ञान का पसरा अँधेरा
आस का दीपक जलाता जा रहा हूँ
मैं उजड़ते बाग का बूढ़ा शजर हूँ
फर्ज को अपने निभाता जा रहा हूँ
उस बुलन्दी के बचे जो भी निशां
खैर मैं उनकी मनाता जा रहा हूँ
जिन्दगी के जलजलों की उलझनों में
'रूप' की शतरँज बिछाता जा रहा हूँ
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शनिवार, 21 मार्च 2020
ग़ज़ल "साँस की सरगम सुनाता जा रहा हूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
जिन्दगी के जलजलों की उलझनों में
जवाब देंहटाएं'रूप' की शतरँज बिछाता जा रहा हूँ
बहुत ख़ूब
आध्यात्म और दर्शन को ग़ज़ल के जरिए बख़ूबी बयां किया है आपने 🙏
मैं उजड़ते बाग का बूढ़ा शजर हूँ
जवाब देंहटाएंफर्ज को अपने निभाता जा रहा हूँ
वाह!!!
क्या बात....
लाजवाब गजल।
कुछ पुराने साज दामन में समेटे
जवाब देंहटाएंसादगी से सुर सजाता जा रहा हूँ।
वाह!!
बहुत उम्दा/बेहतरीन ग़ज़ल ।
कुछ पुराने साज दामन में समेटे
जवाब देंहटाएंसादगी से सुर सजाता जा रहा हूँ
बहुत खूब !!
अत्यन्त सुन्दर गज़ल ।
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन
जवाब देंहटाएंजिन्दगी के गीत गाता जा रहा हूँ
जवाब देंहटाएंसाँस की सरगम सुनाता जा रहा हूँ
बहुत खूब... सर ,सादर नमस्कार