-- बहता जल का सोता है हाथ-हाथ को धोता है -- फूल कहाँ से पायेगा वो जो काँटों को बोता है -- जिसके पास अधिक है होता वही अधिकतर रोता है -- साथ समय के सब सम्भव है क्यों धीरज को खोता है -- फसल उगेगी कैसे अच्छी नहीं खेत को जोता है -- मुखिया अच्छा वो कहलाता जो रिश्तों को ढोता है -- धूप “रूप” की ढल जाती तो कठिन बुढ़ापा होता है -- |
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सोमवार, 26 अक्टूबर 2020
ग़ज़ल "कठिन बुढ़ापा होता है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक)
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सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-10-2020 ) को "तमसो मा ज्योतिर्गमय "(चर्चा अंक- 3867) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंफूल कहाँ से पायेगा वो
जवाब देंहटाएंजो काँटों को बोता है
--
जिसके पास अधिक है होता
वही अधिकतर रोता है
–सत्य कथन
सार्थक लेखन
वंदन
आदरणीय सर ,
जवाब देंहटाएंआपकी जितनी रचनाएँ आज तक पढ़ीं हैं, वह सुंदर व सरल रूप से प्रेरणादायक संदेश देती है। इन्हें पढ़ कर कबीरदास जी के दोहे को पढ़ने जैसी अनुभूति होती है। पुनः बहुत ही सुंदर प्रेरणादायक रचना।
आपसे अनुरोध है कृपया मेरे ब्लॉग पर भी आएं। आपके प्रोत्साहन एवं आशीष के लिए आभारी रहूंगी। मैं ने आपके ब्लॉग को फॉलो कर लिया है , अब यहाँ समय निकाल कर आपकी रचनाएँ पढ़ने के लिए आती रहूंगी। पुनः सादर नमन ।
प्रणाम शास्त्री जी, मुखिया अच्छा वो कहलाता
जवाब देंहटाएंजो रिश्तों को ढोता है ...अद्भुत काव्य और वो भी दोहे के स्वरूप में ...वाह
मुखिया अच्छा वो कहलाता
जवाब देंहटाएंजो रिश्तों को ढोता है ...वाह! लाजवाब सर।
आपकी तमाम रचनाएँ बेमिशाल हैं, चाहे दोहे हों या ग़ज़ल या और कोई साहित्यिक विधा - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंमुखिया अच्छा वो कहलाता।
जवाब देंहटाएंजो रिश्तों को ढोता है।।
आदरणीय, बहुत अच्छा है छोटी बहर का यह शेर ...
बिलकुल सही, घर के मुखिया को रिश्तों से समझौता करना पड़ता है, यदि उसे अपनी सज्जनता बरकरार रखनी हो...
सादर,
- डॉ. वर्षा सिंह