-- मन का रावण मारना, है उत्तम उपहार। विजयादशमी विजय का, है पावन त्यौहार।१। जो दुष्टों के दलन का, करता काम तमाम। उसका ही होता सदा, जग में ऊँचा नाम।२। मानवीयता का रखा, दुनिया में आधार। इसीलिए तो राम की, होती जय-जयकार।३। त्यौहारों का कीजिए, नहीं कभी उपहास। सब पर्वों के मूल में, घटनाएँ हैं खास।४। विजय पर्व पर बाँचिए, स्वर्णिम निज इतिहास। हो जायेगा आपको, गौरव का आभास।५। सत्यनिष्ठ होकर यहाँ, जो करता है काम। कहलाता है जगत में, वो ही राजा राम।६। सुख-सुधिधाएँ त्यागना, नहीं यहाँ आसान। निष्कामी इंसान का, होता है गुण-गान।७। आज हमारे देश में, कृषक नहीं सम्पन्न। फिर भी सुमन समान वो, रहता सदा प्रसन्न।८। नहीं सत्य का है बना, कोई कहीं विकल्प। सत्य बोलने का करो, धारण अब संकल्प।९। मंजिल पाने के लिए, बदलो अपने ढंग। अच्छे लोगों का करो, जीवन में तुम संग।१०। |
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शनिवार, 24 अक्टूबर 2020
विजयादशमी, "दोहे-गौरव का आभास" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन .
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन। जीवन का ज्ञान देते दोहे।
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