आलोकित हो चमन हमारा। हो सारे जग में उजियारा।। -- दुर्गुण मन से दूर भगाओ, राम सरीखे सब बन जाओ, निर्मल हो गंगा की धारा। हो सारे जग में उजियारा।। -- विजय पर्व हो या दीवाली, रहे न कोई मुट्ठी खाली, स्वच्छ रहे आँगन-गलियारा। हो सारे जग में उजियारा।। -- कंचन जैसा तन चमका हो, उल्लासों से मन दमका हो, खुशियों से महके चौबारा। हो सारे जग में उजियारा।। -- सभी अल्पना आज सजाएँ, माता से धन का वर पाएँ, आओ दूर करें अँधियारा। हो सारे जग में उजियारा।। -- घर-घर बँधी हुई हो गैया, चहके प्यारी सोन चिरैया, सुख का सरसेगा फव्वारा। हो सारे जग में उजियारा।। -- |
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मंगलवार, 27 अक्टूबर 2020
गीत "आओ दूर करें अँधियारा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक)
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सुन्दर गीत।
जवाब देंहटाएंअध्यात्म के चिराग़ों से आलोकित रचना ह्रदय में शांति का संचार करती है - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय सर।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर ,
जवाब देंहटाएंशुभकामनाओं से भरपूर बहुत सुंदर कविता। पढ़ कर बहुत आनंद आया। मेरे ब्लॉग पर आकर मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए और मेरा ब्लॉग फॉलो करने के लिए हृदय से अत्यंत अत्यंत आभार।
आप अनुरोध है कि आप आते रहा करियेगा और अपना मार्गदर्शन भी दीजियेगा। आप जैसे बड़ों का आशीष मुझे मिले, इससे बड़ी बात और क्या होगी।
आपसे एक बात पूछूं? प्रभु राम आपके आराध्य हैं न? वे मेरे भी इष्टदेव हैं।
जितनी बार आपकी कविताओं में राम जी का नाम आता है मुझे बहुत अच्छा लगता है।
बेहतरीन रचना आदरणीय।
जवाब देंहटाएंआदरणीय रूपचंद्र शास्त्री मयंक सर, नमस्ते👏! आपकी इस रचना से आलोक पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।
जवाब देंहटाएंकंचन जैसा तन चमका हो,
उल्लासों से मन दमका हो,
खुशियों से महके चौबारा।
हो सारे जग में उजियारा।।
हार्दिक साधुवाद!--ब्रजेन्द्रनाथ