मित्रों।
बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है
मेरा यह छोटा सा आलेख।
यहाँ यह स्पष्ट करना अपना चाहूँगा कि चौपाई को लिखने और जानने के लिए
पहले छन्द के बारे में जानना बहुत आवश्यक है। "छन्द काव्य को स्मरण योग्य बना देता
है।"
छन्द का सर्वप्रथम उल्लेख 'ऋग्वेद' में मिलता है।
जिसका अर्थ है 'आह्लादित करना', 'खुश
करना'। अर्थात्- छन्द की परिभाषा होगी-
'वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या
के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो,
तो उसे छन्द कहते हैं'। छन्द तीन प्रकार के माने जाते हैं। १- वर्णिक
२- मात्रिक और
३- मुक्त ♥ मात्रा
♥ वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे
मात्रा कहा जाता है। अ, इ,
उ, ऋ
के उच्चारण में लगने वाले समय की मात्रा एक गिनी जाती है। आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
तथा इसके संयुक्त व्यञ्जनों के उच्चारण
में जो समय लगता है उसकी दो मात्राएँ गिनी जाती हैं। व्यञ्जन स्वतः उच्चरित नहीं
हो सकते हैं। अतः मात्रा गणना स्वरों के आधार पर की जाती है। ♥ वर्णों
के भेद ♥ मात्रा भेद से वर्ण दो प्रकार के होते हैं। १- हृस्व अ, इ, उ, ऋ क, कि, कु, कृ
अँ, हँ (चन्द्र
बिन्दु वाले वर्ण) (अँसुवर) (हँसी) त्य (संयुक्त व्यंजन वाले वर्ण) २- दीर्घ आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ का, की, कू, के, कै, को, कौ इं, विं, तः, धः
(अनुस्वार व विसर्ग वाले वर्ण) (इन्दु) (बिन्दु) (अतः) (अधः) अग्र का अ, वक्र
का व (संयुक्ताक्षर का पूर्ववर्ती वर्ण) राजन् का ज (हलन् वर्ण के पहले का वर्ण)
हृस्व और दीर्घ को पिंगलशास्त्र में क्रमशः लघु और गुरू कहा जाता है। छन्द के अंग समान्यतया छन्द के अंग छः अंग माने
गये हैंं 1.
चरण/ पद/ पाद 2.
वर्ण और मात्रा 3.
संख्या और क्रम 4.
गण 5.
गति 6.
यति/ विराम चरण या पाद
जैसा कि नाम से ही विदित हो रहा है चरण अर्थात् चार भाग वाला। दोहा, सोरठा आदि में
चरण तो चार होते हैं लेकिन वे लिखे दो ही पंक्तियों में जाते हैं, और
इसकी प्रत्येक पंक्ति को 'दल' कहते हैं। कुछ छन्द छः-छः पंक्तियों (दलों) में लिखे
जाते हैं, ऐसे छंद दो छंद के योग से बनते हैं, जैसे-
कुण्डलिया (दोहा + रोला), छप्पय (रोला + उल्लाला) आदि। चरण 2 प्रकार के
होते हैं- सम चरण और विषम चरण। प्रथम व तृतीय चरण को विषम चरण तथा द्वितीय व
चतुर्थ चरण को सम चरण कहते हैं। अब मूल बिन्दु पर वापिस आते हैं कि चौपाई क्या होती है? चौपाई सम मात्रिक छन्द है जिसमें 16-16
मात्राएँ होती है।
अब प्रश्न यह उठता है कि चौपाई के साथ-साथ “अरिल्ल” और
“पद्धरि” में भी 16-16
ही मात्राएँ होती हैं फिर इनका नामकरण अलग से क्यों किया गया है?
इसका उत्तर भी पिंगल शास्त्र ने दिया है- जिसके अनुसार आठ गण और लघु-गुरू
ही यह भेद करते हैं कि छंद चौपाई है, अरिल्ल है या पद्धरि है।
लेख अधिक लम्बा न हो जाए इसलिए “अरिल्ल” और
“पद्धरि” के बारे में
फिर कभी चर्चा करेंगे। लेकिन गणों को थोड़ा जरूर देख लीजिए-
गण आठ होते है- यगण, मगण, तगण, रगण, जगण, भगण, नगण, सगण
गणों को याद रखने के लिए सूत्र- यमाताराजभानसलगा
इसमें पहले आठ वर्ण गणों के सूचक हैं और अन्तिम दो वर्ण लघु (ल) व गुरु
(ग) के। सूत्र से गण प्राप्त करने का तरीका-
बोधक वर्ण से आरंभ कर आगे के दो वर्णों को ले लें। गण अपने-आप निकल आएगा। उदाहरण- यगण किसे कहते हैं यमाता I S S अतः यगण का रूप हुआ-आदि लघु (I S S)
चौपाई में जगण और तगण का प्रयोग निषिद्ध माना गया है। साथ ही इसमें अन्त
में गुरू वर्ण का ही प्रयोग अनिवार्यरूप से किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए मेरी कुछ चौपाइयाँ देख
लीजिए- “मधुवन में ऋतुराज समाया। पेड़ों पर नव पल्लव लाया।। टेसू की फूली हैं डाली। पवन बही सुख देने वाली।। -- सूरज फिर से है मुस्काया। कोयलिया ने गान सुनाया।। आम, नीम, जामुन
बौराए। भँवरे रस पीने को आए।। -- भुवन भास्कर बहुत दुलारा। मुख मंडल है प्यारा-प्यारा।। सुबह-सवेरे जब जगते हो। तुम कितने अच्छे लगते हो।। -- श्याम-सलोनी निर्मल काया। बहुत निराली प्रभु की माया।। जब भी दर्श तुम्हारा पाते। कली सुमन बनकर मुस्काते।। -- कोकिल इसी लिए है गाता। स्वर भरकर आवाज लगाता।। जल्दी नीलगगन पर आओ। जग को मोहक छवि दिखलाओ।। -- इति! |
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गुरुवार, 18 मार्च 2021
छन्दशास्त्र "चौपाई के बारे में भी जानिये " (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 19-03-2021) को
"माँ कहती है" (चर्चा अंक- 4010) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
आदरणीय शास्त्री जी, आपने जो ज्ञान साझा किया है, वह न केवल हिंदी भाषा तथा काव्य-व्याकरण के विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी है वरन् वर्तमान कवियों के साथ-साथ भविष्य में कवि बनने के अभिलाषियों के लिए भी अमूल्य है क्योंकि किसी भी काव्य-रचना को व्याकरणीय तथा छंद संबंधी शुद्धता ही पठनीय एवं स्मरणीय बनाती है ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंसादर नमन
बहुत सार्थक लेख...ख़ास तौर पर ऐसे समय में, जबकि कवियों में चौपाई लेखन के प्रति रुचि नगण्यप्राय है। रोला, सोरठा, छप्पय भी बहुत ही कम लिखे जा रहे हैं।
निःसंदेह व्याकरण पर आपकी प्रस्तुतियां नये कवियों के लिए प्रकाशस्तंभ का कार्य करेंगी।
पुनश्चः
जवाब देंहटाएंकोकिल इसी लिए है गाता।
स्वर भरकर आवाज लगाता।।
जल्दी नीलगगन पर आओ।
जग को मोहक छवि दिखलाओ।।
बहुत बढ़िया चौपाई है। इसमें "कोकिल इसीलिए है गाता"
रेखांकित किए जाने योग्य है। सामान्य तौर पर "कोयल गाती है" लिखते हैं लोग...। जबकि मादा कोयल का स्वर कर्कश होता है और उसके उलट नर कोयल का स्वर मधुर। नर कोयल मादा कोयल को आकर्षित करने के लिए ही मधुर स्वर में कूकता है।
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
कोयल तथा उसके गायन संबंधी यह नवीन ज्ञान प्रदान करने के लिए शास्त्री जी तथा आप भी साधुवाद के पात्र हैं ।
हटाएंआदरणीय शास्त्री जी, आपका यह चौपाई भरा आलेख पढ़कर ज्ञान की अनुभूति के साथ साथ आनंद भी दे गया, लगा हमें ब्लॉग जगत में मर्गदर्शक मिल गया है, हमारे लिए तो ये अनमोल ख़ज़ाना है, आपको मेरा हार्दिक नमन..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी बहुत ही शानदार आलेख बहुत कुछ सीखने को मिलता है आपके साथ
जवाब देंहटाएंउत्तम जानकारी
जवाब देंहटाएंकोकिल इसी लिए है गाता।
जवाब देंहटाएंस्वर भरकर आवाज लगाता।।
जल्दी नीलगगन पर आओ।
जग को मोहक छवि दिखलाओ।।
जितनी सुंदर पंक्तियां, चौपाई पर उतनी ही ज्ञानवर्द्धक जानकारी... नमन है आपके ज्ञान और सृजन को 🌹🙏🌹 - डॉ शरद सिंह
बहुत ही बढ़िया ज्ञान वर्धक पोस्ट आदरणीय सर।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सटीक जानकारी के साथ उपयोगी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंसंकलित करने योग्य सभी काल में हितकारी,कवि वृंद के लिए।