-- हर रोज रंग अपना, गुलशन बदल रहा है। घर-द्वार तो वही है, आँगन बदल रहा है।। -- सूरज नियम से उगता, चन्दा नियम से आता। कल-कल निनाद करता, झरना ग़ज़ल सुनाता। पतझड़ के बाद अपना, उपवन बदल रहा है। घर-द्वार तो वही है, आँगन बदल रहा है।। -- उड़ उड़के आ रहे हैं, पंछी खुले गगन में। परदेशियों ने डेरा, डाला हुआ चमन में। आसन वही पुराना, शासन बदल रहा है। घर-द्वार तो वही है, आँगन बदल रहा है।। -- महफिल में आ गये हैं, नर्तक नये-नवेले। बेजान हैं तराने, शब्दों के हैं झमेले। हैरत में है ज़माना, दामन बदल रहा है। घर-द्वार तो वही है, आँगन बदल रहा है।। -- |
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सोमवार, 10 जनवरी 2022
गीत "हर रोज रंग अपना, गुलशन बदल रहा है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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जवाब देंहटाएंनमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (10-01-2022 ) को (चर्चा अंक 4305) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 09:00 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत सुंदर रचना, आदरणीय 🙏
जवाब देंहटाएंप्रणाम शास्त्री जी, आपकी ये रचना हमने यहां भी 'साभार' प्रकाशित कर दी है, लिंक ये रहा-
जवाब देंहटाएंhttp://legendnews.in/10-january-world-hindi-day-is-celebrated-in-indian-embassies-of-the-world/
वाह!बहुत सुंदर सर।
जवाब देंहटाएं