-- समय
चक्र में घूम रहे जब मीत बदल जाते हैं। उर
अलिन्द में झूम रहे नवगीत मचल जाते है।। जब
मौसम अंगड़ाई लेकर झाँक रहा होता है, देख-देख
अपने को मन कितना खुश होता है, नये
सुरों के साथ सभी संगीत बदल जाते हैं। उर
अलिन्द में झूम रहे कुछ गीत मचल जाते है।। उपवन
में जब नये पुष्प अवतरित हुआ करते हैं, बंजर
धरती में ही पौधे अंकुरित हुआ करते हैं, पल्लव-परिधानों
के तब उपवीत बदल जाते हैं। उर
अलिन्द में झूम रहे कुछ गीत मचल जाते है।। रात
अमावस में 'मयंक' जब कारा में रहता है, जगमग
करती हुई दिवाली से मनवा कहता है, कृष्ण-कन्हैया
के माखन नवनीत बदल जाते हैं। उर
अलिन्द में झूम रहे कुछ गीत मचल जाते है।। चलते-चलते
भुवन-भास्कर जब कुछ थक जाता है, तन्द्रा
के के आभासी जग में सारा जग अलसाता है, मुल्ला-पण्डित
के पावन उद्गीथ बदल जाते है। उर
अलिन्द में झूम रहे कुछ गीत मचल जाते है।। जीवन
का अवसान देखकर यौवन भी ढल जाता है, मुख-मण्डल
का सारा ही तब ओज-तेज-बल जाता है, रंग-ढंग,
आचरण,
रीत और प्रीत बदल जाते हैं।। उर
अलिन्द में झूम रहे कुछ गीत मचल जाते है।। -- |
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गुरुवार, 20 अक्टूबर 2022
गीत "कृष्ण-कन्हैया के माखन नवनीत बदल जाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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