भारत
में अब हो गया, छठ माँ का उद्घोष। लोगों का त्यौहार में, रहे न खाली कोष।। उगते
ढलते सूर्य का, छठपूजा त्यौहार। जन
गण-मन में मात हैं, श्रद्धा का आधार।। अपने-अपने
नीड़ से, निकल पड़े नर-नार। सरिताओं
के घाट पर, उमड़ा है संसार।। अस्तांचल
की ओर जब, रवि करता प्रस्थान। छठ
पूजा पर्व पर, देता अर्घ्य जहान।। परम्पराओं
पर टिका, अपना भारतवर्ष। नदी-सरोवर
तीर पर, लोग मनाते हर्ष।। षष्टी
मइया कीजिए, सबका बेड़ा पार। मात
की अरदास को, उमड़ा है संसार।। कठिन
तपस्या के लिए, छठ का है त्यौहार। व्रत
पूरा करके करो, ग्रहण शुद्ध आहार।। छठपूजा
पर तीन दिन, होता है उपवास। श्रद्धा
से करते सभी, माता की अरदास।। उदित-अस्त
रवि को सदा, अर्घ्य चढ़ाना नित्य। नवजीवन जड़-जगत को, देता है आदित्य।। |
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शनिवार, 29 अक्टूबर 2022
दोहे "छठ माँ का त्यौहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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छठ पूजा का सुंदर वर्णन!!
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(३०-१०-२०२२ ) को 'ममता की फूटती कोंपलें'(चर्चा अंक-४५९६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
वाह वाह, सामयिक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएं