माटी के कुछ दीप जलाएँ। आओ तम को दूर भगाएँ।। पंच पर्व नजदीक आ रहे, झालर-लड़ियाँ लोग ला रहे, जगमग करते दीप भा रहे, लीप-पोतकर घर-आँगन को, साफ-सफाई हम अपनाएँ। आओ तम को दूर भगाएँ।। मन से बैर-भाव को त्यागें, अमृत बेला में हम जागें, कर्मक्षेत्र से कभी न भागें, जाति-धर्म से देश बड़ा है, मानवता की रीत निभाएँ। आओ तम को दूर भगाएँ।। अब विकास का चक्र चल रहा, जगमग-जगमग दीप जल रहा, आँखों में सुख-स्वप्न पल रहा, सुमन सीख देते उपवन में, कोमलता को हम अपनाएँ। आओ तम को दूर भगाएँ।। सिया-राम उद्घोष उचारें, माता की आरती उतारें, इष्टदेव को नित्य पुकारें, भक्ति-भाव के वाहक बनकर, कभी न माता को बिसराएँ। आओ तम को दूर भगाएँ।। |
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गुरुवार, 27 अक्टूबर 2022
बालगीत "मन से बैर-भाव को त्यागें" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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भारत में इतने पर्व हैं पर दीपावली सबका सिरमौर है, सुंदर वर्णन!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.10.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4594 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसुंदर भावों से सृजित सुंदर बाल गीत।
जवाब देंहटाएं