-- रोशनी का पर्व है, दीपक जलायें। नीड़ को नन्हें दियों से जगमगायें।। -- बातियाँ नन्हें दियों की कह रहीं, वेदना का ताप हँसकर सह रहीं, तम मिटाकर, हम उजाले को बुलायें। नीड़ को नन्हें दियों से जगमगायें।। -- डूबते को एक तिनके का सहारा, जिन्दगी को अन्न के कण ने उबारा, धरा में धन-धान्य को जम कर उगायें। नीड़ को नन्हें दियों से जगमगायें।। -- जेब में ज़र है नहीं तो क्या दिवाली, मालखाना माल बिन होता है खाली, किस तरह दावा उदर की अब बुझायें। नीड़ को नन्हें दियों से जगमगायें।। -- आओ सब मिल-बाँटकर खायें मिठाई, दीपकों में नेह-बाती जगमगाई, सदन सबके रोशनी से झिलमिलायें। नीड़ को नन्हें दियों से जगमगायें।। -- |
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रविवार, 23 अक्तूबर 2022
गीत "नीड़ को नन्हें दियों से जगमगायें" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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