(मुखड़े के लिए श्री यू.आर.मीत का आभार) |
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बुधवार, 24 जून 2009
‘‘शत्रुता से भरे फासले कम करो’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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waah ji waah
जवाब देंहटाएंatyant uttam vichaar
atyant uttam kavita ...............badhaai !
bahut hi prernadayi geet...........ek seekh deta hai.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर विचार है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
अति सुंदर विचार काश सब माने यह बात तो कितना अच्छा हो.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत सुन्दर रचना है।रचना द्वारा अपने विचारो की अभिव्यक्ति बहुत सुन्दर ढंग से की है बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंक्रूरता से भरे काफिले कम करो।
जवाब देंहटाएंशत्रुता से भरे फासले कम करो।।
सामयिक विचार और सुन्दर कविता, धन्यवाद!
क्रूरता से भरे काफिले कम करो।
जवाब देंहटाएंशत्रुता से भरे फासले कम करो।।
मत उलझना जमाने के जंजाल में,
रंग में ढंग में, चाल में-ढाल में,
Bade bhai,
bahut hi sundar bhav jagaane ka kaam kar rahe hain.
आपके विचार इस वक्त के हिन्दोस्तान की जरूरत है .
जवाब देंहटाएंअच्छे विचार और कविता .
हमेशा की तरह .
मिलते रहें .
सत विचार!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति, आभार
जवाब देंहटाएंकाश! हम सब ऐसा ही सोच सकें!
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंBehatreen........
जवाब देंहटाएंवाह वाह बहुत सुन्दर सार्थक और प्रेरक अभिव्यक्ति है आभार्
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