काले अक्षर कभी-कभी, तो बहुत सताते है। कभी-कभी सुख का, सन्देशा भी दे जाते हैं।।
कभी बेरुखी कभी प्यार से, मीठी बातें करता है।।
जख्म जिन्दगी में दे जाता, अक्षर बड़ा अनूप।।
किसी-किसी का तो, अभिनव संसार खड़ा है।।
केवल समय दिखा सकता है, सीधी-सच्ची राहें।।
इसी लिए तो कहते हैं जी काला अक्षर भैंस बराबर।। |
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शनिवार, 27 जून 2009
‘‘काले अक्षर’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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dhnya ho mayankji,
जवाब देंहटाएंatte saral aur sahaj grahiya shbdon me kitti gahri baat kar dete ho
man abhibhoot ho jata hai...
aapka haardik abhinandan !
अहा यह बड़ी मज़ेदार कविता है
जवाब देंहटाएं----
मिलिए अखरोट खाने वाले डायनासोर से
khoobsoorat rachna.
जवाब देंहटाएंaap ke rachna aap ke anubhav ko darshati hai
जवाब देंहटाएंaap bhut hi gahrai main ja kar likhte hai
बहुत ही सुंदर.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
aksharon से bolti akshar के upar likhi सुन्दर रचना है...........
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत.
जवाब देंहटाएंरामराम.