आज राम के देश में, फैला रावण राज। कैसे अब बच पाएगी, सीताओं की लाज।। गंगा बहती झूठ की, गिरी सत्य पर गाज। पापकर्म बढ़ने लगे, दूषित हुआ समाज।। लोकतन्त्र में हो रहा, कैसा गन्दा खेल। शासन में बढ़ने लगी, घोटालों की बेल।। ग्वाले मक्खन खा रहे, मोहन की ले ओट। सत्ता के तालाब में, मगर रहे हैं लोट।। आशा है मन में यही, आयेंगे अवतार। मेरे भारत देश का, होगा तब उद्धार।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
रविवार, 16 अक्टूबर 2011
" घोटालों की बेल" ( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
धन्य-धन्य यह मंच है, धन्य टिप्पणीकार |
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति आप की, चर्चा में इस बार |
सोमवार चर्चा-मंच
http://charchamanch.blogspot.com/
आशा है मन में यही उतरेंगे अवतार ...
जवाब देंहटाएंयही आस विश्वास बनाये रखती है !
हम हिन्दुस्तानी तो वैसे भी अवतारों की राह देखते ही रहे हैं। अच्छे दोहे शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंवर्तमान परिस्थितियों में सन्नाट व्यंग मारती कविता।
जवाब देंहटाएंग्वाले मक्खन खा रहे, मोहन की ले ओट।
जवाब देंहटाएंहमें मिले ना मूँगफली , वो खायें अखरोट.
सामयिक चुटीले दोहे.
आज की परिस्थिति पर सटीक व्यंग
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर व्यंग्यात्मक दोहे।
जवाब देंहटाएंसटीक व्यंग..सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंश्री मान जी नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही बात कही है आपने, सब कुछ ऐसा ही हो रहा है |
सुंदर दोहे
जवाब देंहटाएंसटीक प्रस्तुति
बहुत बढ़िया दोहे प्रस्तुत किए हैं!
जवाब देंहटाएंइस रचना के माध्यम से आपने जो भी कहा है वह बिल्कुल सत्य है। अब तो सही में किसी अवतार का ही इंतज़ार है ताकि इस देश का उद्धार हो सके।
जवाब देंहटाएंसुबह के पहले रात की कालिमा और गहरी हो जाती है। वैसे अवतारों का इंतजार ना कर खुद ही कदम उठ जाएं तो बेहतर है।
जवाब देंहटाएंघोटालों की इस् विषबेल के खिलाफ अब जंग जरूरी है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही संयत शब्दोँ मेँ भ्रष्टाचार व अन्याय व्यवस्था का सटीक चित्रण किया है आपने,उत्कृष्ट रचना,बधाई!
जवाब देंहटाएंमौजूदा दौर का बेहतर चित्रण।
जवाब देंहटाएंabhi to ye bel aur badhegee
जवाब देंहटाएंवास्तविक स्थिति का चित्रांकन है इस कविता के माध्यम से।
जवाब देंहटाएंआज की समाजिक व्यवस्था पर सटीक चोट
जवाब देंहटाएंआज की समाजिक व्यवस्था पर सटीक चोट
जवाब देंहटाएंbahut sunder :)
जवाब देंहटाएंआज के परिवेश में बदलते सामाजिक मूल्यों पर सटीक प्रहार .......
जवाब देंहटाएंचुटीली सामयिक छंद सर....
जवाब देंहटाएंसादर बधाई....
सटीक लेखनी ..वर्तमान के हालातो पर आधारित
जवाब देंहटाएंलाजवाब दोहे! सटीक चित्रण !
जवाब देंहटाएं