आपाधापी की दुनिया में, मतलब की सब दुनियादारी। दुनियादारी के मेले में, आज बन गये सब व्यापारी।। बिना काम के कोई किसी को, बिल्कुल याद नहीं करता है, अमृत पाने के लालच में , सागर का पानी भरता है, स्वार्थ पड़ा है सब पर भारी। दुनियादारी के मेले में, आज बन गये सब व्यापारी।। मानवता के इस दंगल में, केवल दाँव-पेंच चलते हैं, धनवानों की घुड़सालों में, बलशाली घोड़े पलते हैं, पश्चिम की असभ्य आँधी से, पूरब की पुरवा है हारी। दुनियादारी के मेले में, आज बन गये सब व्यापारी।। सजे-धजे परिधान छोड़कर, अंगों का हो रहा प्रदर्शन, सोच हुई है कितनी बौनी, घटा “रूप” का सब आकर्षण, भूल गये हैं शब्द लाज का, फैशन की पनपी बीमारी। दुनियादारी के मेले में, आज बन गये सब व्यापारी।। |
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रविवार, 13 नवंबर 2011
"आज बन गये सब व्यापारी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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आपने बहुत ही सुन्दर रचना लिखा है! बधाई!
जवाब देंहटाएंधनवानों की घुड़सालों में,
जवाब देंहटाएंबलशाली घोड़े पलते हैं
वाह!!! क्या बात है. बिल्कुल सच है कि
सोच हुई है कितनी बौनी,
घटा “रूप” का सब आकर्षण,
bhtrin rchnaa ke liyen bdhai shastri saahb ..akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंइस व्यापार में हम सब वस्तु बन गये हैं।
जवाब देंहटाएंसब ओर स्वार्थ हावी है और भावनाओं की खरीद फ़रोख़्त हो रही है!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना।
व्यापार ने मानवीय सरोकारों को धूमिल सा कर दिया है!
जवाब देंहटाएंसटीक प्रस्तुति!
बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंदुनियादारी के मेले में,
जवाब देंहटाएंआज बन गये सब व्यापारी।।
-सच कहा...बेहतरीन रचना!!
बहुत बढ़िया व बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंGyan Darpan
Matrimonial Site
दुनियादारी के मेले में सब बन गये व्यापारी ...
जवाब देंहटाएंयही सच है !
क्या बात है ! सौ टके की एक बात...जीवन व्यापर तो है ,परन्तु सच्चा सौदा ,खरा सौदा हम नहीं कर प् रहे हैं जी ,बस उलझन इसी बात की है .......मुखर अभिव्यक्ति को आदर जी /
जवाब देंहटाएंye duniya ek vyapaar hee hai
जवाब देंहटाएंबिना मतलब के कुछ नहीं है वास्तव में यह दुनिया एक बाजार बन गयी है। बहुत अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही बात कही है सर!
जवाब देंहटाएं----
कल 15/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
bilkul sahi vyang hai swarth parton ki duniya me sabhi rishte naate khokhle ho gaye hain.bahut achcha likha.
जवाब देंहटाएंwahh...
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar prastuti hai..
बहुत सुन्दर भावों से सजी कविता...धन्यवाद अंकल!!!
जवाब देंहटाएंइस ही व्यापार पर मैंने भी एक पोस्ट लिखी है। समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर अपप्का स्वागत है
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया कविता... सचमुच आज हम व्यापारी हो गए हैं...
जवाब देंहटाएंसजे-धजे परिधान छोड़कर,
जवाब देंहटाएंअंगों का हो रहा प्रदर्शन,
सोच हुई है कितनी बौनी,
घटा “रूप” सब आकर्षण,
सटीक ब्यान
शास्त्री जी, इसमें कोई दो-राय नहीं कि आप सिद्धहस्त कवि हैं। आप जैसा पारंगत कवि ब्लॉग जगत में खोज पाना सम्भव नहीं।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी, नागेश द्वारा खड़े किये गये विवाद पर सम्मानित रचनाकार डॉ0 मोहम्मद अरशद खान की विस्तृत टिप्पणी आ गयी है, जिसे पढ़कर यह स्पष्ट हो जाता है कि इसे किस प्रकार गढ़ा गया और बढ़ाया गया। उस टिप्पणी को यहाँ पर पढ़ा जा सकता है। चूंकि उस विवाद से आप शुरू से जुडे रहे हैं, इसलिए सूचनार्थ आपको यह जानकारी दी जा रही है, जिससे आप सम्पूर्ण वस्तुस्थिति से अवगत हो सकें।
जवाब देंहटाएंद होल थिंग इज दैट कि भैया सबसे बड़ा रुपैया...
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna.......aaj ke haqiqat-
जवाब देंहटाएंAdbhut Vyang
जवाब देंहटाएंEkdum sach kaha
www.poeticprakash.com
आज बन गए सब व्यापारी...
जवाब देंहटाएंसचमुच...
बहुत सुन्दर रचना सर...
सादर...
आपको पढने का एक अलग सुख है..
जवाब देंहटाएंमतलब की इस दुनिया में सभी बन गए व्यापारी..
सुंदर भाव
सही कहा है आपने इस कविता के माध्यम से बहुत ही गहरी और आज की वास्तविकता कह दिया है आपने |
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना