अब करते क्यों उसी से, सौतेला व्यवहार।१। जिस चिट्ठे के साथ में, जुड़ा आपका नाम। उस पर भी तो कीजिए, निष्ठा से कुछ काम।२। लेखन के संसार में, चलना नहीं कुचाल। जो सीधा-सीधा चले, होता वो खुशहाल।३। सोच-समझ कर ही सदा, यहाँ बनाओ मित्र। मन के मन्दिर में सदा, रक्खो उनके चित्र।४। बिना नम्रता के सभी, होते दुष्कर काम। अहमभाव से कभी भी, मिलता नहीं इनाम।५। |
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बुधवार, 30 नवंबर 2011
"दोहे-साझा ब्लॉग" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बहुत सुन्दर ..उत्तम विचार और सत्य्वचन .. सुन्दर दोहे..
जवाब देंहटाएं्दोहे तो बहुत सुन्दर है और अच्छी सीख भी दे रहे है मगर मामला क्या है?
जवाब देंहटाएंसारे साझा संस्थानों की यही समस्या है।
जवाब देंहटाएंbahut hi acche or sikh dete dohe...
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंक्या बात है,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
शानदार संदेश भी दे रहे हैं।
सुन्दर दोहे शानदार संदेश.....
जवाब देंहटाएंउत्तम.
जवाब देंहटाएंबिना नम्रता के सभी, होते दुष्कर काम।
जवाब देंहटाएंअहमभाव से कभी भी, मिलता नहीं इनाम।।
सुन्दर शिक्षाप्रद दोहे रचे हैं सर...
सादर///
बहुत सुंदर दोहे...
जवाब देंहटाएंkya baat kahi hai sir ,lakh take ki ek batt,sahridayata ki sundar mishal.. shukriya ji
जवाब देंहटाएंसुंदर संदेश देती शिक्षाप्रद दोहे,...
जवाब देंहटाएंनए पोस्ट "प्रतिस्पर्धा"में इंतजार है,..
शास्त्री जी आज तो आभार के लिए भी शब्द कम पड़ जाएंगे। लगता है आप ज्योतिष हैं और मेरे मन की बातें यहां नोट कर दी है --
जवाब देंहटाएंकिया आपने था जिसे, मन से अंगीकार।
अब करते क्यों उसी से, सौतेला व्यवहार।१।
यह पहला दोहा मेरे द्व्वारा कुछ मित्रों को ...
जिस चिट्ठे के साथ में, जुड़ा आपका नाम।
उस पर भी तो कीजिए, निष्ठा से कुछ काम।२।
यह दूसरा दोहा आपके द्वारा मेरे लिए ...
लेखन के संसार में, चलना नहीं कुचाल।
जो सीधा-सीधा चले, होता वो खुशहाल।३।
अहा ... यह सबके द्वारा सबके लिए ...
सोच-समझ कर ही सदा, यहाँ बनाओ मित्र।
मन के मन्दिर में सदा, रक्खो उनके चित्र।४।
यह तो सबसे बड़ी सीख आपके द्वारा मेरे लिए।
सुंदर दोहे....
जवाब देंहटाएंआदरणीय मनोज कुमार जी की टिप्पणियाँ मेरे मेल बॉक्स में तो दिखाई देती हैं मगर ब्लॉग पर नहीं आ रहीं हैं !
जवाब देंहटाएं--
मनोज कुमार ने आपकी पोस्ट " "दोहे-साझा ब्लॉग" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मय... " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
शास्त्री जी आज तो आभार के लिए भी शब्द कम पड़ जाएंगे। लगता है आप ज्योतिष हैं और मेरे मन की बातें यहां नोट कर दी है --
किया आपने था जिसे, मन से अंगीकार।
अब करते क्यों उसी से, सौतेला व्यवहार।१।
यह पहला दोहा मेरे द्व्वारा कुछ मित्रों को ...
जिस चिट्ठे के साथ में, जुड़ा आपका नाम।
उस पर भी तो कीजिए, निष्ठा से कुछ काम।२।
यह दूसरा दोहा आपके द्वारा मेरे लिए ...
लेखन के संसार में, चलना नहीं कुचाल।
जो सीधा-सीधा चले, होता वो खुशहाल।३।
अहा ... यह सबके द्वारा सबके लिए ...
सोच-समझ कर ही सदा, यहाँ बनाओ मित्र।
मन के मन्दिर में सदा, रक्खो उनके चित्र।४।
यह तो सबसे बड़ी सीख आपके द्वारा मेरे लिए।
शानदार!
जवाब देंहटाएंguru ji....angikaar shabd se mujhe yaad aayaa...hamari gurbaani mein ek bandish hai....
जवाब देंहटाएंangikaaroh kare tera kaaraj sabb sawaarna!!
शिक्षापूर्ण विचारों से ओत-प्रोत दोहे,सादर आभार.
जवाब देंहटाएं