शीत बढ़ा, सूरज शर्माया। आसमान में कुहरा छाया।। चिड़िया चहकी, मुर्गा बोला, हमने भी दरवाजा खोला, लेकिन घना धुँधलका पाया। आसमान में कुहरा छाया।। जाड़ा बहुत सताता तन को, कैसे जाएँ सुबह भ्रमण को, सर्दी ने है रंग जमाया। आसमान में कुहरा छाया।। गज़क-रेवड़ी बहुत सुहाती, मूँगफली सबके मन भाती, दादी ने अलाव सुलगाया। आसमान में कुहरा छाया।। शीतल तुहिन कणों को खाते, गेंहूँ झूम-झूम लहराते, हरियाली ने रूप दिखाया। आसमान में कुहरा छाया।। |
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सोमवार, 28 नवंबर 2011
"आसमान में कुहरा छाया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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क्या बात है? आज तो हमारे यहां भी कोहरा छाया हुआ है। प्रात: भ्रमण को जाने में आलस आने लगा है। बहुत ही अच्छा चित्र खींचा है।
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachna ...
जवाब देंहटाएंsardi ka sunder ehsaas karaati hui ..
वाह ...बहुत बढि़या।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूब लिखा है आपने ! ख़ूबसूरत रचना!
जवाब देंहटाएंशब्द चित्र ने वातावरण को सजीव कर दिया है!
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव
जवाब देंहटाएंहरियाली ने रुप दिखाया, आसमान मेंकुहरा छाया।
क्या कहने।
वाह सुन्दर कविता.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंझीनी झीनी एक चदरिया आसमान ने ओढ़ी अब तो।
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar rachana hai...
जवाब देंहटाएंnaisargik srijan men aapka jabab nahin , bahut badhiya sir.
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत बढि़य.
जवाब देंहटाएंवाह वाह... मजा आ गया सर...
जवाब देंहटाएंसुन्दर मौसम, सुन्दर गीत
किट किट किट कर आया शीत....
सादर...
हर मौसम के अनुकूल आपका अंदाज़ निराला हो जाता है और हमें लगता है कि यह तो कितना सहज सरल है।
जवाब देंहटाएंठंड का मौसम......
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना।
प्रकृत रंग से रंगा - रँगाया।
जवाब देंहटाएंगीत आपका बहुत ही भाया।
भाव मधुर मनभावन भाषा।
शब्द-शब्द में गुंफित आशा।
देख -निरख मन है हर्षाया।
गीत आपका बहुत ही भाया।
yahaan par to waise bhee abhi utni thand padi nahee hai!
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