बकरे की माँ कब तक, अपनी खैर मना पाएगी। बेटों के संग-संग, उसकी भी कुर्बानी हो जाएगी।। बकरों का बलिदान चढ़ाकर, ईद मनाई जाती है। इन्सानों की करतूतों पर, लाज सभी को आती है।। यश-गौरव पाना है तो, कुछ अपनी भी कुर्बानी दो। प्राणों को परवान चढ़ा, राहे-हक़ में बलिदानी हो। निर्दोषों की गर्दन पे, क्यों छुरा चलाया जाता है? आह हमारी लेकर, क्यों त्यौहार मनाया जाता है?? हिंसा करना किसी धर्म में, ऩहीं सिखाया जाता है। मोह और माया को तजना, त्याग बताया जाता है।। तुम अमृत को पियो भले, औरों को तो जल पीने दो। खुद भी जियो शान से, लेकिन औरों को भी जीने दो।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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सोमवार, 7 नवंबर 2011
"जियो और जीने दो!" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बकरों का बलिदान चढ़ाकर, ईद मनाई जाती है।इन्सानों की करतूतों पर, लाज सभी को आती है।।
जवाब देंहटाएंअगर इतना जी समझ जाते तो फिर प्रोब्लम ही कहाँ थी ?
लेकिन अब इनके कुतर्कों का इन्तजार कीजिए आप !
निर्दोषों की गर्दन पे, क्यों छुरा चलाया जाता है?
जवाब देंहटाएंआह हमारी लेकर, क्यों त्यौहार मनाया जाता है??
हिंसा करना किसी धर्म में, ऩहीं सिखाया जाता है।
मोह और माया को तजना, त्याग बताया जाता है।।
सटीक लिखा है आपने! क़ाश आपकी बातें हर किसीको समझ में आ जाये !
बिल्कुल सही प्रश्न उठाया है…………काश ये बात हर कोई समझ पाये।
जवाब देंहटाएंसबको जीने दिया जाये
जवाब देंहटाएंयथार्थपरक व संदेशपूर्ण कविता !
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है,कृपया अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।
http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.html
बहुत सार्थक रचना सर,
जवाब देंहटाएंसादर आभार....
sarthak ...sunder rachna ...
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक रचना। ऐसी हिम्मत होनी चाहिए। वाह।
जवाब देंहटाएंबहुत सही बात कही है आपने काश यह ज़रा सी बात सभी को समझ आजाये... तो कितना अच्छा हो...
जवाब देंहटाएंसार्थक सन्देश सर !
जवाब देंहटाएंआभार ......
Kyon jeev hatya rukwa kar duniya ko bhukha maarna chahte hain??? Aur keval bhookha hi nahi balki....
जवाब देंहटाएंbahut hi sahi baat kahi hai apne...
जवाब देंहटाएंek nispap jiv ki kurbani nahi deni chahiye...
kash samajhane wale is baat ko samajh jate...
अफ़सोस , धार्मिक विषयों पर कोई सहमती होना संभव नहीं ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना है. सही कहा बेजुबानों की बलि चढ़ाकर ख़ुशी मानते हैं, ये कैसा धर्म? सिर्फ बकरी हीं नहीं किसी भी पशु पक्षी की हत्या कर खाना कहीं से भी धार्मिकता नहीं है और न हीं मानवीयता. पर मांसाहारियों को ये कभी समझ नहीं आती. आपकी रचना के माध्यम से शायद कुछ लोगों के मन में प्रेम जन्मे. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंvishay achcha hai. bhav bhee achche hain bas is kavita ko bhejne ka samay shayad sahee nahin.
जवाब देंहटाएंapna apna gyan aur apna apna khyaal.
बात तो सही है..पर कैसे समझाएं.
जवाब देंहटाएंगहरी बात।
जवाब देंहटाएंआमीन.................
गहरी बात।
जवाब देंहटाएंआमीन.................
सन्देश देती बेहतरीन सुंदर रचना..अच्छी लगी ..
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट "वजूद" पर स्वागत है आपको जरूर पसंद आयेगी..ऐसा मेरा विस्वाश है ...
सार्थक सन्देश !
जवाब देंहटाएंsensitive issue....better not to talk...!!
जवाब देंहटाएंbahut bahut prabhaav shali bahut achcha danke ki chot par likha hai.dr.Divya ko bhi comment option khol dena chahiye sab ko sahi baat likhne ka haq hai.isme logon ko naaraj hone vaali baat nahi hai padhe likhe log lakeer ke fakeer kyun bane samajhdari se kaam len.sirf isi tyohaar ki baat nahi maans khaane vaale sabhi dharm aur jaati ke logon ke liye bhi yah shiksha kaayam hoti hai.aabhar Shastri ji bahut achcha likha hai aapne.
जवाब देंहटाएंसच!!! बहुत सुन्दर वाह!
जवाब देंहटाएंक्यों सेन्सीटिव इशू है भई...क्यों न बात की जाय ...वास्तव में ही बहुत सेन्सीटिव इश्यू है...निरीह जान्वरों पर अत्याचार का त्योहार के नाम पर ...अब समय आगया है कि बात की जाय अवैग्यानिक बातें व प्राणी हिन्सा पर...
जवाब देंहटाएं---सुन्दर व सार्थक पोस्ट ...
एक की मौत दूसरे का जश्न बनी
जवाब देंहटाएंकिसी की जान गयी
दुनिया से मुक्ती मिली
किसी की ईद मनी
मन की मुराद पूरी हुयी
किसी के आंसू
किसी की हँसी बनी
एक की मौत दूसरे का
जश्न बनी
पर दुनिया की रीत
नहीं बदली
निरंतर गम और खुशी
साथ चलती रही
अमृत और ज़हर की
दुश्मनी ख़त्म नहीं हुयी
ज़िन्दगी और मौत में
आँख मिचोली
होती रही
07-11-2011
1754-22-11-11
क़ुरबानी और मांसाहार के बारे में आपने अपने मनोभाव को व्यक्त किया , यह ठीक है लेकिन आपको प्रतिपक्ष की बात पर भी ध्यान देना चाहिए।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !!!
‘चर्चा
गोश्तखोरी-सब्जीखोरी debate स्वामी नित्यानंद और डाक्टर बशीर
1910–1911 ई.
हिंसा करना किसी धर्म में, ऩहीं सिखाया जाता है।
जवाब देंहटाएंमोह और माया को तजना, त्याग बताया जाता है।।
..sach koi dharm aisi izazat hargiz nahi de sakta..
bahut badiya saarthak prastuti ..aabhar!
विचारणीय और सराहनीय कविता . आभार .
जवाब देंहटाएंएक निरीह जानवर की हत्या करने से, जिसे हम बलि का नाम देते हैं, ऊपरवाला कैसे खुश होता है ये बात आजतक समझ नहीं आई...
जवाब देंहटाएंनीरज
हिंसा करना किसी धर्म में, ऩहीं सिखाया जाता है।
जवाब देंहटाएंमोह और माया को तजना, त्याग बताया जाता है।।
सार्थक और सौदेश्य प्रस्तुति शाष्त्री जी की बधाई .
umdaa...vichar....bahut khub
जवाब देंहटाएंsocnhe yogye baat
लोग अब तर्क देने लगे हैं कि सब्जी फल भी जीव हैं...वो भी जीव हत्या है,
जवाब देंहटाएंबहुत हि सार्थक रचना...