तन-बदन में आज तो, बुखार ही बुखार है।। मुश्किलों में हैं सभी, फिर भी धुन में मस्त है, ताप के प्रकोप से, आज सभी ग्रस्त हैं, आन-बान, शान-दान, स्वार्थ में शुमार है। तन-बदन में आज तो, बुखार ही बुखार है।। हो गये उलट-पलट, वायदे समाज के, दीमकों ने चाट लिए, कायदे रिवाज़ के, प्रीत के विमान पर, सम्पदा सवार है। तन-बदन में आज तो, बुखार ही बुखार है।। अंजुमन पे आज, सारा तन्त्र है टिका हुआ, आज उसी वाटिका का, हर सुमन बिका हुआ, गुल गुलाम बन गये, खार पर निखार है। तन-बदन में आज तो, बुखार ही बुखार है।। झूठ के प्रभाव से, सत्य है डरा हुआ, बेबसी के भाव से, आदमी मरा हुआ, राम के ही देश में, राम बेकरार है। तन-बदन में आज तो, बुखार ही बुखार है।। |
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शनिवार, 26 नवंबर 2011
"खार पर निखार है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बेहद सुन्दर ... कितने भाव है .. पर लय है गीत है... खूबी आपकी ..सादर
जवाब देंहटाएंaapke kavitaon ki lay dekhte banti hai... aur bhaw ka jabab nahi:)
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया कविता... व्यंग भी भाव भी...
जवाब देंहटाएंbahut badhiya.
जवाब देंहटाएंन जाने किस अधिकता का लक्षण है यह बुखार..
जवाब देंहटाएंझूठ के प्रभाव से, सत्य है डरा हुआ,
जवाब देंहटाएंबेबसी के भाव से, आदमी मरा हुआ,
राम के ही देश में, राम बेकरार है।
तन-बदन में आज तो, बुखार ही बुखार है।।
गज़ब की व्यंग्यात्मक रचना है………बहुत खूब्।
वाह ....बहुत ही बढि़या।
जवाब देंहटाएंआपकी कविता फैक्ट्री से निकली हर कविता.....अपने भाव और व्यंग्य में हर बार की तरह इस बार भी खरी उतरती है ............आभार
जवाब देंहटाएंहो गये उलट-पलट, वायदे समाज के,
जवाब देंहटाएंदीमकों ने चाट लिए, कायदे रिवाज़ के,
प्रीत के विमान पर, सम्पदा सवार है।
बहुत बढ़िया गीत सर..
सादर..
बेहतरीन शब्द समायोजन..... भावपूर्ण अभिवयक्ति....
जवाब देंहटाएंझूठ के प्रभाव से, सत्य है डरा हुआ,
जवाब देंहटाएंबेबसी के भाव से, आदमी मरा हुआ,
राम के ही देश में, राम बेकरार है।
bahut achhee panktiyaan
झूठ के प्रभाव से, सत्य है डरा हुआ,
जवाब देंहटाएंबेबसी के भाव से, आदमी मरा हुआ,
कटु यथार्थ।
झूठ के प्रभाव से, सत्य है डरा हुआ,
जवाब देंहटाएंबेबसी के भाव से, आदमी मरा हुआ,
राम के ही देश में, राम बेकरार है।
तन-बदन में आज तो, बुखार ही बुखार है।।
....बहुत सटीक और लाज़वाब प्रस्तुति..
अंजुमन पे आज, सारा तन्त्र है टिका हुआ,
जवाब देंहटाएंआज उसी वाटिका का, हर सुमन बिका हुआ,
गुल गुलाम बन गये, खार पर निखार है।
वाह ! बहुत तीक्ष्ण...
कटु सत्य को कहती अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंदीमकों मे चाट लिए कायदे रिवाज के .... साची बात कहता बहुत सुंदर गीत...
जवाब देंहटाएंसमय मिले कभी तो आयेगा मृ पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/
झूठ के प्रभाव से, सत्य है डरा हुआ,
जवाब देंहटाएंबेबसी के भाव से, आदमी मरा हुआ,
बेहद सुन्दर ...!
bahut hi sundar gitmayi rachana hai...
जवाब देंहटाएंsundar prastuti...
bahut hi sundar gitmayi rachana hai...
जवाब देंहटाएंsundar prastuti...
बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंउम्मिदें हुईं नहीं अभी तार-तार हैं,
जवाब देंहटाएंचाटां पडा गाल पे यह बेबसों का उपहार है।
सुंदर प्रस्तुति,..
जवाब देंहटाएंलगता है मेरे पोस्ट तक आने के लिए आपके पास समय नही है,फिर भी आपका इन्तजार करूगाँ....
झूठ के प्रभाव से, सत्य है डरा हुआ,
जवाब देंहटाएंबेबसी के भाव से, आदमी मरा हुआ,
राम के ही देश में, राम बेकरार है।
तन-बदन में आज तो, बुखार ही बुखार है।।
बहुत खूब ...
अंजुमन पे आज, सारा तन्त्र है टिका हुआ,
जवाब देंहटाएंआज उसी वाटिका का, हर सुमन बिका हुआ,
यथार्थ !!, सुन्दर अभिव्यक्ति --साधुवाद ,