मित्रों! आज शुक्रवार के चर्चा मंच पर कुछ तुकबन्दी बन गई है! यह चित्र प्रस्तुत है! देखो सरपट दौड़ रहा है, दो पैरों का घोड़ा। घोटक राजा कुछ तो बोलो, क्यों हाथों को छोड़ा?। इन्सानों की बस्ती में, सब वक्र चाल चलते हैं। इनकी घुड़सालों में कितने, घोड़े-गर्दभ पलते हैं।। चारा खाते हुए तुम्हारी, अकल गई क्यों मारी? अपनी जात बदलकर, तुमने भूल करी है भारी।। दो पग वालों के मन में, छल-कपट समाये रहते हैं। जो इनके दिल में होता है, कभी न उसको कहते हैं।। एक बार अपने निर्णय पर, सोच-विचार अवश्य करो। उसके बाद मनुजता की, देहली पर अपने कदम धरो।। चाल तुम्हारी मस्तानी, ये सहन नहीं कर पायेंगे। घोटालों के भार-बोझ, तुम पर ही लादे जायेंगे।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011
"क्यों हाथों को छोड़ा?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
वाह!!
जवाब देंहटाएंमजेदार... दिलचस्प।
bahut rochak.chitra ke maadhyam se achcha vyang prahaar kiya hai.
जवाब देंहटाएंबहुत badhiyaa shastri ji , waise मैं soch रहा था कि jaise kampyutar की bhaasha में badee faail को zip करने का आप्शन hotaa है, waise ही agar jeev vigyaan के लिए भी koi zip का आप्शन निकल आये तो insaano को भी इसी घोड़े के tarah...... :)
जवाब देंहटाएंsach aaj bina haathon ka ghoda hi sarpat bhagta hai..
जवाब देंहटाएंbahut badiya vyang..
गोदियालजी, नेक लोगों के नेक विचार होते हैं। पर यदि वही आप्शन "एंड-बैंड" हाथों में पड गया तो ???
जवाब देंहटाएंमजेदार... दिलचस्प है ये दो पैरो वाला घोड़ा..
जवाब देंहटाएंचाल तुम्हारी मस्तानी, ये सहन नहीं कर पायेंगे।
जवाब देंहटाएंघोटालों के भार-बोझ, तुम पर ही लादे जायेंगे।। बेहतरीन ग़ज़ल....
रोचक..
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी,..
जवाब देंहटाएंमेरे पोस्ट -प्रतिस्पर्धा-का चित्र पसंद आया,..आभार
और आपने उस पर रोचक रचना लिख डाली,..
सुंदर तुकबंदी के लिए बधाई,...
is video par aadharit apki kavita to lajawab hai..
जवाब देंहटाएंintresting....
sundar prstuti....
जवाब देंहटाएंव्यंग्यात्मक शैली मे रोचक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर वाह!
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी, नमन!
जवाब देंहटाएंबस और कुछ नहीं कहूंगा आज।
आप तो कविता की पाठशाला है।
बहुत बढिया,
जवाब देंहटाएंवाह
पढना बहुत अच्छा लगा मजेदार रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
चौपाये...बन रहने में ही भलाई है...वरना अपनी चाल भूल कर चालबाजियां करने लगेंगे...घोड़े भी...
जवाब देंहटाएंbadhiyaa sansmaran hai guru jee
जवाब देंहटाएंरोचक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं