आ गई हैं सर्दियाँ मस्ताइए। बैठकर के धूप में सुस्ताइए।। पर्वतों पर नगमगी चादर बिछी. बर्फबारी देखने को जाइए। बैठकर के धूप में सुस्ताइए।। रोज दादा जी जलाते हैं अलाव, गर्म पानी से हमेशा न्हाइए। बैठकर के धूप में सुस्ताइए।। रात लम्वी, दिन हुए छोटे बहुत, अब रजाई तानकर सो जाइए। बैठकर के धूप में सुस्ताइए।। खूब खाओ सब हजम हो जाएगा, शकरकन्दी भूनकर के खाइए। बैठकर के धूप में सुस्ताइए।। |
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सोमवार, 12 दिसंबर 2011
"बर्फबारी देखने को जाइए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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ठंड में निमंत्रण और वो भी बर्फबारी देखने जाना...क्या बात है...अभी तो ठंड ज्यादा नहीं है पर अभी से डर लगने लगा....बहुत ही सुंदर लिखा है आपने...आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सामयिक रचना!
जवाब देंहटाएंजबलपुर में तो आज शाम से ठण्ड अचानक ही बढ़ गई.ऐसे में आपकी कविता पढ़कर मजा आ गया.
जवाब देंहटाएंशस्त्री जी, ठण्ड का कुछ अलग आनंद,..सुंदर
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना,....
नेता,चोर,और तनखैया, सियासती भगवांन हो गए
अमरशहीद मात्रभूमि के, गुमनामी में आज खो गए,
भूलसे हमने शासन देडाला, सरे आम दु:शाशन को
हर चौराहा चीर हरन है, व्याकुल जनता राशन को,
बर्फ की ठंडक में पर्यटन की गर्मी।
जवाब देंहटाएंठंड का अहसास कराती रचना।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना ...... हमारे यहाँ आधे साल बर्फबारी ही है .......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!
जवाब देंहटाएंआपकी कवितायें तो माहौल को सामने ला देती हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंye drashya kahaan ka hai guru jee?
जवाब देंहटाएंबर्फबारी का मज़ा औरों को लेने दीजिए। हम तो रजाई में ही ठीक हैं!
जवाब देंहटाएंइस महीने के आखिर में योजना बना रहे हैं हम कहीं निकलने की।
जवाब देंहटाएंकाश ऐसे बर्फबारी में मैं भी यहां मौजूद रहता..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
बहुत सुन्दर रचना! सर्दी का एहसास देती हुई पर शास्त्री जी पर्थ में तो अभी गर्मी है और सर्दी पड़ने में अभी काफी देर है!
जवाब देंहटाएंमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
बहुत खूबसूरत अंदाज़ ऐ बयां |
जवाब देंहटाएंटिप्स हिंदी में
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंउ उ उ बहुत ठण्ड है यहाँ तो.
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति सर...
जवाब देंहटाएंसादर...