देखो कितना भिन्न है, आभासी संसार। शब्दों से लड़ते रहो, लेकर क़लम-कटार।। ज़ालजगत पर हो रही, चिट्ठों की भरमार। गीत, कहानी-हास्य की, महिमा अपरम्पार।। पण्डे-जोशी को नहीं, खोज रहा यजमान। जालजगत पर हो रहा, ग्रह-नक्षत्र मिलान।। नवयुग में सबसे बड़ा, ज्ञानी अन्तर्जाल। इसकी झोली में भरा, सभी तरह का माल।। स्वाभिमान के साथ में, रहो सदा आनन्द। अपने बूते पर लिखो, सभी विधा निर्द्वन्द।। |
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गुरुवार, 8 दिसंबर 2011
"आभासी संसार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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महिमा अन्तर्जाल की बांचा जी! पुरजोर।
जवाब देंहटाएंऐसे सुन्दर जाल में फँसै न एकौ चोर॥
एक नया संसार है, सबका अपना ठौर,
जवाब देंहटाएंबैठे बैठे चल रहा, सबके मन का दौर।
सटीक लिखी है बात उन्होंने एक लेखक बतौर,
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी की बात पर सभी फरमाइयेगा गौर !
बात आप साँची कहें अच्छा है ये मंच,
जवाब देंहटाएंअपने दिल की बात को कह सकते हें लोग,
गहन विषय भी सुगम बन चुके पल भर में,
सुलझ गयीं हें गुत्थियाँ कह सकते हें लोग.
शास्त्री जी, अन्तर्जाल के दोहे बहुत सार्थक वर्णन कर रहे हें और साथ ही जीवन को एक नई दिशा भी दे रहे हें. आभासी दुनियाँ ने अकेले इंसान को एक अकेलेपन के अहसास से बचा लिया है.
yahi to hai antarjaal ki mahanta sahi varnan kiya hai dohon ke maadhyam se.bahut achche dohe.
जवाब देंहटाएंअपने बूते पर लिखो, सभी विधा निर्दवन्द।।
जवाब देंहटाएंsatya likha hai .aabhar
वाह!!!!
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति।
sach bat ko badi khubsurti se shabd men pirodiaya hai aapne ...http://mhare-anubhav.blogspot.com/ iske saath-saath naye blog aapki pasand par bhi aapka svagat hai samay mile to zarur aaiyegaa meri post par
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता.
जवाब देंहटाएंवाह वाह वाह बहुत ही गज़ब की प्रस्तुति है………जय हो अन्तरजाल्।
जवाब देंहटाएंसमेट ली सारी गाथा आपने इस प्रस्तुति में!
जवाब देंहटाएंप्रभावित करती रचना ...
जवाब देंहटाएंआजकल आप बहुत बढ़िया दोहे लिख रहे हैं!
जवाब देंहटाएं--
लगता है आपकी दोहावली भी आनेवाली है!
जय हो अन्तरजाल!
जवाब देंहटाएंआज सायं 6-31 पर वन्दना गुप्ता जी ने टिप्पणी भेजी। जो मेरे मेल पर तो आ गई मगर गूगल महाराज ने पोस्ट पर प्रकाशित ही नहीं की!
--
वन्दना rosered8flower@gmail.com द्वारा blogger.bounces.google.com
६:३१ अपराह्न (1 घंटे पहले)
मुझे
वन्दना ने आपकी पोस्ट " "आभासी संसार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")... " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
वाह वाह वाह बहुत ही गज़ब की प्रस्तुति है………जय हो अन्तरजाल्।
internet ki mahanata ka bahoot khub varnan kiya hai...
जवाब देंहटाएंinternet bhi khush ho gaya hoga...
शास्त्री जी, आपने सुंदर किया बखान,
जवाब देंहटाएंइस अन्तर्जाल से मिलता सबको ज्ञान
मिलता सबको ज्ञान,घर बैठे पा जाता
गूगल में सर्च करो,सबकुछ मिल जाता,....
बहुत सुंदर प्रस्तुति,....
मेरे नये पोस्ट में आपका इंतजार है....
बहुत सुन्दर ज्ञानमय प्रस्तुति है आपकी.
जवाब देंहटाएंपढकर बहुत अच्छा लगा.
आभार.
अंतरजाल की महिमा का खूबसूरती से बखान
जवाब देंहटाएंनवयुग में सबसे बड़ा, ज्ञानी अन्तर्जाल।
जवाब देंहटाएंइसकी झोली में भरा, सभी तरह का माल।।
हतप्रभ हूं।
कोई विषय ऐसा है जिस पर आपने नहीं लिखा हो!
परिवर्तन की बयार बही रही है जग में
जवाब देंहटाएंहो जाएँ हम तुम बही इस प्रवाह के संग में ||
kya khoob ...
जवाब देंहटाएंअंतर्जाल की महिमा अपरम्पार...बहुत अच्छी प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंbahut hee badhiyaa hai!!
जवाब देंहटाएंअंतर्जाल की महिमा अपरम्पार.
जवाब देंहटाएंbehtreen aur sarthak....
जवाब देंहटाएंबहुत मजेदार है और नए जमाने की यह नब्ज अच्छी पकड़ी है...
जवाब देंहटाएं