अब
तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।
पहले
भूल करी तो भारत सदियों तक परतन्त्र रहा,
खण्ड-खण्ड
हो गया देश, लेकिन बिगड़ा जनतन्त्र रहा,
पुनः
गुलामी का ख़तरा भारत के सिर पर डोल रहा।
अब
तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।
जिसने
बैठाया आसन पर, वो ही धूल चटा देगी,
जुल्मी-शासक
का धरती से, नाम-निशान मिटा देगी,
छल
की लिए तराजू क्यों जनता का धीरज तोल रहा।
अब
तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।
खेल
रहा है खेल घिनौना, जन-गण के मत को पाकर,
हित
स्वदेश का बिसराया है, सत्ता के मद में आकर,
ईस्ट
इण्डिया के दरवाजे फिर से घर में खोल रहा।
अब
तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।
आजादी
का अर्थ भूलकर, स्वछन्दता
मन को भाई.
अपनाकर
अंग्रेजी, अपनी हिन्दी भाषा बिसराई,
जटा
खोलकर शंकर क्यों गंगा में विष को घोल रहा।
अब
तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।
देशी रग में खून विदेशी, पाया "रूप" सलोना है.
इनकी नज़रों में स्वदेश का, आम नागरिक बौना है,
रंगे स्यार को देख, लहू सारी जनता का खौल रहा।
अब तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
सोमवार, 24 सितंबर 2012
"जनता का धीरज डोल रहा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
बिलकुल सही कह रहे हैं शास्त्री जी। मैंने कल यही बात इस रूप मे उदद्रित की थी-"The Indian Revolt of1942 मे अम्बा प्रसाद के लिखे का डॉ परमात्मा शरण,पूर्व प्राचार्य -मेरठ कालेज,मेरठ कृत हिन्दी अनुवाद के अनुसार 08 अगस्त ,1942 को बंबई मे कांग्रेस महासमिति ने अपना ऐतिहासिक संकल्प स्वीकार किया-"भारत मे ब्रिटिश शासन का तुरंत ही अंत होना भारत तथा साथी देशों की सफलता के लिए अति आवश्यक है। इस शासन का जारी रहना भारत को निरंतर गिरा रहा है और देश अपनी प्रतिरक्षा के लिए कमजोर होता जा रहा
जवाब देंहटाएंहै। फासिस्टवाद के विरुद्ध सफलता पुराने उद्देश्यों,नीतियों व उपायों से चिपके रहने पर नहीं प्राप्त हो सकती। भारत की स्वतन्त्रता से ही ब्रिटेन और संयुक्त राष्ट्र को आँका जाएगा। स्वतंत्र भारत इस सफलता को अवश्य प्राप्त कर सकेगा,क्योंकि यह अपने सभी साधनों को स्वतन्त्रता के लिए तथा फासिस्टवाद,नाजीवाद और साम्राज्यवाद के आक्रमणों के विरुद्ध लगा देगा। ... पराधीन भारत ब्रिटिश साम्राज्यवाद का चिन्ह बना हुआ है। तुरंत स्वतन्त्रता की प्राप्ति ही ,भावी वायदे नहीं ,युद्ध के रूप को बादल सकती है। अतएव अखिल भारतीय कांग्रेस समिति अत्यधिक जोरदार शब्दों मे भारत से ब्रिटिश सत्ता को हट जाने की मांग दोहराती है। "
70 साल बाद उसी कांग्रेस सिद्धांतों की धज्जियां उड़ाते हुये मनमोहन जी अमेरिकी कारपोरेट कंपनियों के आगे घुटने टेक कर भारत की अस्मिता पर बट्टा लगा रहे हैं। कांग्रेसियों और उसके शुभ चिंतकों का परम कर्तव्य है कि यथाशीघ्र पी एम पद से मनमोहन जी को विदा करके किसी देशभक्त को यह पद सौंपे अन्यथा जनता कांग्रेस से ही सत्ता छीन लेगी।"
साफ़ शफ्फाफ़ नदी जैसी ताज़गी और रवानी लिए लिंक्स के लिए आभार !
जवाब देंहटाएंसाफ़ शफ्फाफ़ नदी जैसी ताज़गी और रवानी लिए काव्य के लिए आभार !
जवाब देंहटाएं♥
देश को सुखद भविष्य मिले।
जवाब देंहटाएंखेल रहा है खेल घिनौना, जन-गण का मत पाकर,
जवाब देंहटाएंहित स्वदेश का बिसराया है, सत्ता के मद में आकर,
ईस्ट इण्डिया के दरवाजे फिर से घर में खोल रहा।
अब तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।,,,,
बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,,,
RECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता
समय समय की बात है.
जवाब देंहटाएंघाटे का सौदा करे, सेठ अशर्फी लाल ।
जवाब देंहटाएंगाँव गाँव में बेच के, बेहद मद्दा माल ।
बेहद मद्दा माल, बिठाता भट्ठा सबका ।
एक क्षत्र हो राज्य, रो रहा ग्राहक-तबका ।
करी सब्सिडी ख़त्म, विदेशी वह व्यापारी ।
बेंचे महंगा माल, खरीदेगी लाचारी ।।
क्या होगा इस देश का..???
जवाब देंहटाएंसच ही अब तो धीरज डोलने लगा है -आपके शब्द आम जन की आवाज़ है
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल २५/९/१२ मंगलवार को चर्चाकारा राजेश कुमारी के द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है
जवाब देंहटाएंbahut achchi lagi.....
जवाब देंहटाएंख़ून तो सच में आम आदमी का बहुत ही खौल रहा है। देखें कब यह लावा बन कर विस्फोट करता है।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसोमवार, 24 सितम्बर 2012
"जनता का धीरज डोल रहा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बहुत समय से दुष्ट बणिक था अपनी जगह टटोल रहा।
अब तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।
पहले भूल करी तो भारत सदियों तक परतन्त्र रहा,
खण्ड-खण्ड हो गया देश, लेकिन बिगड़ा जनतन्त्र रहा,
पुनः गुलामी का ख़तरा भारत के सिर पर डोल रहा।
अब तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।
जिसने बैठाया आसन पर, वो ही धूल चटा देगी,
जुल्मी-शासक का धरती से, नाम-निशान मिटा देगी,
छल की लिए तराजू क्यों जनता का धीरज तोल रहा।
अब तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।
खेल रहा है खेल घिनौना, जन-गण के मत को पाकर,
हित स्वदेश का बिसराया है, सत्ता के मद में आकर,
ईस्ट इण्डिया के दरवाजे फिर से घर में खोल रहा।
अब तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।
आजादी का अर्थ भूलकर, स्वछन्दता मन को भाई.
अपनाकर अंग्रेजी, अपनी हिन्दी भाषा बिसराई,
जटा खोलकर शंकर क्यों गंगा में विष को घोल रहा।
अब तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।
नस-नस में है खून विदेशी, पाया "रूप" सलोना है.
इनकी नज़रों में स्वदेश का, आम नागरिक बौना है,
रंगे स्यार को देख, लहू सारी जनता का खौल रहा।
अब तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।
क्या बात है शास्त्री जी लिखा आपने है भोगा और तदानूभूत हमने भी किया है सृजन के इन लम्हों को जिनमें यह सुन्दर गीत स्वत :स्फूर्त प्रवाह से निकलके आया है अंतस से .अच्छी नींद आयेगी आज रात को .बधाई भाई साहब .
भाई साहब यह गीत और इस पर टिपण्णी इसी रूपाकार में फेस बुक पर भी जा चुकी है .बधाई पुन :
जवाब देंहटाएंजनता का धीरज वाकई डोल रहा है
जवाब देंहटाएंनेता बैठ के यह सब तोल रहा है
इस बार इसने भुना लिया है सब
दूसरा अगली बार के लिये झोले तोल रहा है !
देश के लिए सही दिशा निर्धारित हो ...
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने ...आभार
जवाब देंहटाएं’अब तो लालकिला भी खुल कर,उनकी बोली बोल रहा’
जवाब देंहटाएंप्रतीकों के माध्यम से देश की चिंताजनक स्थिति का
बखूबी चित्रण किया है. आशा है देश के ग्रह नक्षत्र बदल जाएम.
इस कविता के माध्यम से आपने आम भारतीय के हृदय की वेदना को सुन्दर तरीके से अभिव्यक्त किया है ...... आभार ।
जवाब देंहटाएं