देशभक्त हो गये किनारे, चाटुकार सरदार हो गये।
नौका को
भटकाने वाले, ही अब खेवनहार
हो गये।।
मुरझाये हैं
सुमन सलोने, गुलशन भी है
सूखा-सूखा,
बीज-खाद-पानी
खा डाला, फिर भी तो है
माली भूखा,
भीनीमहक कहाँ
से आये, पैदा खरपतवार हो गये।
नौका को
भटकाने वाले, ही अब खेवनहार
हो गये।।
शिक्षा की खुल
गयी दुकानें, गुरू हो गये
हैं व्यापारी,
बिना ज्ञान के
नयी नस्ल में, बढ़ती जाती है
बेकारी,
ऋषियों की
सन्तानों के अब, गायब सब
किरदार हो गये।
नौका को
भटकाने वाले, ही अब खेवनहार
हो गये।।
चारे की क्या
बात कहें अब, लोहा-लक्कड़-ईंट
पचाते,
सेवा का व्रत
ले जनसेवक, रिश्वत और
दलाली खाते,
जनता के पैसे
से इनके, तगड़े कारोबार
हो गये।
नौका को
भटकाने वाले, ही अब खेवनहार
हो गये।।
बनकर बगुलाभगत, ताल की मीनों को ये
घूँट रहे है,
हाथ-कमल, बाइस्किल-हाथी, सारे ही तो लूट रहे
हैं,
वोटों की
भिक्षा पा करके, भिक्षुक जी
सरकार हो गये।
नौका को
भटकाने वाले, ही अब खेवनहार
हो गये।।
|
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शनिवार, 1 दिसंबर 2012
"चाटुकार सरदार हो गये" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आज की तस्वीर करती अच्छी रचना है शास्त्री जी ! इन चाटुकार सरदारों ने देश का बेड़ा गरक किया, भगवान् इनका बेड़ा गरक करे !
जवाब देंहटाएंक्षमा चाहता हूँ , ये गूगल वाले ने भी ट्रान्सलिट्रेशन का बेड़ा गरक कर दिया ऊपर की टिपण्णी में " बयान" शब्द मिसिंग है , कृपया उसे आज की तस्वीर बयान करती पढ़े !
हटाएंशिक्षा की खुल गयी दुकानें, गुरू हो गये हैं व्यापारी,
जवाब देंहटाएंबिना ज्ञान के नयी नस्ल में, बढ़ती जाती है बेकारी,
ऋषियों की सन्तानों के अब, गायब सब किरदार हो गये।
नौका को भटकाने वाले, ही अब खेवनहार हो गये।।
bilkul sahi kaha hai aapne.
सटीक प्रहार |
जवाब देंहटाएंबधाई गुरु जी ||
देशभक्त हो गये किनारे, चाटुकार सरदार हो गये।
जवाब देंहटाएंइसी पंक्ति ने सब कुछ कह दिया…………शानदार प्रस्तुति।
baqhut sahi likha hai kataksh me...
जवाब देंहटाएंव्यंग बहुत धारदार है वर्तमान परिप्रेक्ष्य में
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
बहुत बढ़िया तंज किया है भवानी प्रसाद मिश्र की ये पंक्तियाँ याद आ गईं -
जवाब देंहटाएंअधिक नहीं सिर्फ चार कौवे थे ,
कभी कभी ऐसा जादू हो जाता है ,
ये सब कौवे चार बड़े सरदार हो गए ,
इनके साथी चील ,गिद्ध, और बाज़ हो गए .
वर्तमान का सुन्दर चित्रण
जवाब देंहटाएंहालात तो ऐसे ही हैं :(
जवाब देंहटाएंशिक्षा की खुल गयी दुकानें, गुरू हो गये हैं व्यापारी,
जवाब देंहटाएंबिना ज्ञान के नयी नस्ल में, बढ़ती जाती है बेकारी,
bahut sahi kaha hai aapne .aabhar
भ्रष्टाचार मिटाने वाले आन्दोलन की बैंड बज गयी।
जवाब देंहटाएंअन्ना जी की टोपी अब केजरीवाल के शीश सज गयी।
लगी जाँच की आँच तेज तो रामदेव बेजार हो गये।
नौका को भटकाने वाले, ही अब खेवनहार हो गये॥
हकीकत से रूबरू कराती रचना !!
जवाब देंहटाएंHey there! Do you know if they make any plugins to protect against hackers?
जवाब देंहटाएंI'm kinda paranoid about losing everything I've worked hard on.
Any recommendations?
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अधिक नहीं सिर्फ चार कौवे थे ,
जवाब देंहटाएंकभी कभी ऐसा जादू हो जाता है .
ये सब कौवे चार बड़े सरदार हो गए ,
इनके दुश्मन चील गिद्ध और बाज़ हो गए .
शास्त्री जी रात को भी टिपण्णी की थी इस पोस्ट पर फेस बुक पर भी आपके ब्लॉग पर भी .सौतिया स्पेम खा गया .बढिया बहुत बढ़िया बंदिश है यह आपकी बेहतरीन तंज करती है व्यवस्था गत विद्रूप पर
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बहुत दमदार चित्रण, पता नहीं क्या से क्या है गये।
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