मोहब्बत की हसीं राहें
तुम्हारे प्यार को खुश्बू बसा, इस दिल में लाया हूँ
मोहब्बत की हसीं राहों में, यादें छोड़ आया हूँ
कभी जब याद करके गाँव की, गलियों से गुजरेगें
मैं अपनी खिल-खिलाहट के वो मंजर छोड़ आया हूँ
मेरी उल्फत की यादें, जब कभी तुम भूल जाओगे
चुभाने के लिये दिल में, मैं काँटे छोड़ आया हूँ
जहाँ में खुश्बू-ए-गुल सा महकना, घर को महकाना
तुम्हारे बन्द कमरों में, उजाले छोड़ आया हूँ
तमन्नाओं को मेरी, तुमने अपना रंग दे डाला
दुआयें खुशनसीबी की, तुम्हें मैं छोड़ आया हूँ
उन्हें अब दायरों में बाँधना, “बदनाम” करना है
महकने और महकाने को, गुलशन छोड़ आया हूँ।
(गुरू सहाय भटनागर "बदनाम")
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सोमवार, 17 दिसंबर 2012
"ग़ज़ल - गुरूसहाय भटनागर बदनाम" (प्रस्तोता-डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बढ़िया ग़ज़ल ।
जवाब देंहटाएंवाह! सुंदर गजल...
जवाब देंहटाएंपढ़वाने हेतु सादर आभार।
जवाब देंहटाएंजहाँ में खुश्बू-ए-गुल सा महकना, घर को महकाना
तुम्हारे बन्द कमरों में, उजाले छोड़ आया हूँ
बहुत बढ़िया गजल ,आत्म गौरव और दुआओं से
वाह, लाजवाब.
जवाब देंहटाएंरामराम
बेहतरीन, लाजबाब गजल ,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: वजूद,
बढिया गजल
जवाब देंहटाएंक्या बात
सुन्दर लेखन !!
जवाब देंहटाएंbahut hee sundar....
जवाब देंहटाएंअच्छी गजल है, बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत खूब
जवाब देंहटाएंउन्हें अब दायरों में बाँधना, “बदनाम” करना है
जवाब देंहटाएंमहकने और महकाने को, गुलशन छोड़ आया हूँ।
-'बदनाम'हों भले सोच सुन्दर है .
उन्हें अब दायरों में बाँधना, “बदनाम” करना है
जवाब देंहटाएंमहकने और महकाने को, गुलशन छोड़ आया हूँ।बहुत खूब
बहुत ख़ूब, दमदार अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंbahut hee sundar.... sar g
जवाब देंहटाएं