नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!
गधे चबाते हैं काजू,
महँगाई खाते बेचारे!!
काँपे माता काँपे बिटिया, भरपेट न जिनको भोजन है,
क्या सरोकार उनको इससे, क्या नूतन और पुरातन है,
सर्दी में फटे वसन फटे सारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
जो इठलाते हैं दौलत पर, वो खूब मनाते नया-साल,
जो करते श्रम का शीलभंग,वो खूब कमाते द्रव्य-माल,
वाणी में केवल हैं नारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
नव-वर्ष हमेशा आता है, सुख के निर्झर अब तक न बहे,
सम्पदा न लेती अंगड़ाई, कितने दारुण दुख-दर्द सहे,
मक्कारों के वारे-न्यारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
रोटी-रोजी के संकट में, नही गीत-प्रीत के भाते हैं,
कहने को अपने सारे हैं, पर झूठे रिश्ते-नाते हैं,
सब स्वप्न हो गये अंगारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
टूटा तन-मन भी टूटा है, अभिलाषाएँ ही जिन्दा हैं,
आयेगीं जीवन में बहार, यह सोच रहा कारिन्दा हैं,
कब चमकेंगें नभ में तारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
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शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012
"गधे चबाते हैं काजू, महँगाई खाते बेचारे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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इस देश की आधी से ज्यादा आबादी तो ऐसी है जिनको नए और पुराने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला ........अच्छी रचना !!
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
यथार्थ सत्य की अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंगधे चबाते हैं काजू,
जवाब देंहटाएंमहँगाई खाते बेचारे!!
बहुत सही !
आज के यथार्थ की सटीक अभिव्यक्ति,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post : नववर्ष की बधाई
बहुत सुन्दर यथार्थ की अभिव्यक्ति ****^^^^*****टूटा तन-मन भी टूटा है, अभिलाषाएँ ही जिन्दा हैं,
जवाब देंहटाएंआयेगीं जीवन में बहार, यह सोच रहा कारिन्दा हैं,
कब चमकेंगें नभ में तारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
शुभ कामनाओं से प्रेरित तंज भरा गीत नव वर्ष का .बढ़िया प्रासंगिक लेखन .बधाई .
जवाब देंहटाएंटूटा तन-मन भी टूटा है, अभिलाषाएँ ही जिन्दा हैं,
आयेगीं जीवन में बहार, यह सोच रहा कारिन्दा हैं,
कब चमकेंगें नभ में तारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
Virendra Sharma @Veerubhai1947
ram ram bhai मुखपृष्ठ http://veerubhai1947.blogspot.in/ शुक्रवार, 28 दिसम्बर 2012 अतिथि कविता :हम जीते वो हारें हैं
नव वर्ष में सब शुभ हो आपके गिर्द .
जीते वह हारे हैं , कैसे अजब नज़ारे हैं .... अधिक »
अतिथि कविता :हम जीते वो हारें हैं
ram ram bhaiपरVirendra Kumar Sharma - 6 मिनट पहले
अतिथि कविता :हम जीते वो हारें हैं -डॉ .वागीश मेहता हम जीते वह हारे हैं ................................... दिशा न बदली दशा न बदली , हारे छल बल सारे हैं , वोटर ने मारे फिर जूते , कैसे अजब नज़ारे हैं . (1) पिछली बार पचास पड़े थे , अबकी बार पड़े उनचास , जूते वाले हाथ थके हैं , हाईकमान को है विश्वास , बंदनवार सजाये हमने , हम जीते वह हारे हैं , कैसे अजब नज़ारे हैं .... अधिक »
बहुत खूब, वाह..
जवाब देंहटाएंइक बरहमन ने कहा है की ये साल अच्छा है...
जवाब देंहटाएंनव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!
जवाब देंहटाएंनव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!
गधे चबाते हैं काजू,
महँगाई खाते बेचारे!!नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!
सुन्दर रचना ,आभार सहित ।
कब चमकेंगे नभ में तारे!आशाओं का दामन छूटना नहीं चाहिए ---धन्यवाद ,इस सार्थक रचना के लिए
जवाब देंहटाएंनया वर्ष में नए सितारे का इन्तेजार रहेगा -अच्छी रचना :
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट :"नया वर्ष मुबारक हो सबको "
बढ़िया प्रासंगिक लेखन
जवाब देंहटाएंनये साल पर कुछ बेहतरीन ग्रीटिंग आपके लिए
रोटी-रोजी के संकट में, नही गीत-प्रीत के भाते हैं,
जवाब देंहटाएंकहने को अपने सारे हैं, पर झूठे रिश्ते-नाते हैं,
सब स्वप्न हो गये अंगारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
बढ़िया ....
bahut sundar sir...:)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर। नव वर्ष-2013 की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ। मेरे नए पोस्ट पर आपके प्रतिक्रिया की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसारी 'मेवा' गधों ने खा ली, 'इंसानों' को मिलेगा क्या ?
जवाब देंहटाएं'प्रजा'रहे 'भूखी',सब खा ले 'राजा', देश चलेगा क्या ??