उन्हें सुनना नहीं आता, हमें गाना नहीं आता।
उन्हें चलना नहीं आता, हमें ढोना नहीं भाता।।
बहुत बेदार हैं वो भी, बहुत बेजार हैं हम भी,
उन्हें जगना नहीं आता, हमें सोना नहीं भाता।
बहुत मशहूर हैं वो भी, बहुत मगरूर हैं हम भी,
उन्हें खाना नहीं आता, हमें पीना नहीं भाता।
खुदा का नूर हैं वो भी, नहीं बेनूर हैं हम भी,
उन्हें मरना नहीं आता, हमें जीना नहीं भाता।
विरल हम भी नहीं हैं कुछ, सरल वो भी नहीं है कुछ,
उन्हें खोना नहीं आता, हमें पाना नहीं भाता।
सुहानी धूप का उनको, नशा है "रूप" का उनको,
उन्हें जादू नहीं आता, हमें टोना नहीं भाता।
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गुरुवार, 6 दिसंबर 2012
"ग़ज़ल-हमें गाना नहीं आता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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विरल हम भी नहीं हैं कुछ, सरल वो भी नहीं है कुछ,
जवाब देंहटाएंउन्हें खोना नहीं आता, हमें पाना नहीं भाता।
bahut khoob !
बढिया, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया,,,
जवाब देंहटाएंइस सादगी पे उनकी न क्यों जान वारिये,
कहते है कर सवाल मुझे सब क़ुबूल है,,,,
sundar .हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंमगर उनके बिना जाहिद हमें जीना नहीं आता ,
मरना नहीं भाता .
बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंबेहतर प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंबहुत दमदार..
जवाब देंहटाएंखुद हममे हैं इतनी खामियां
जवाब देंहटाएंदूसरों की गिनाना नहीं आता
वैसे किसी को क्या नहीं आता और किसी को क्या नहीं भाता का अच्छा चित्रण ....सादर!
वाह. हमेशा की ही तरह सुंदर
जवाब देंहटाएंखुदा का नूर हैं वो भी, नहीं बेनूर हैं हम भी
उन्हें मरना नहीं आता, हमें जीना नहीं भाता
बहुत बढ़िया !
बहुत सुंदर !
आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी
सादर प्रणाम !
आपकी रचनाओं के लिए क्या कहूं …
हर रचना सुंदर रचना !
अप्रतिम ! अद्वितीय ! अलौकिक !
:)
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
bahut hi sundar prastuti
जवाब देंहटाएं