१७००वाँ
पुष्प
बहारों का भरोसा
क्या, न जाने रूठ जायें कब?
सहारों का भरोसा
क्या, न जाने छूट जायें कब?
अज़ब हैं रंग
दुनिया के, अज़ब हैं ढंग लोगों के
इशारों का भरोसा
क्या, न जाने लूट जायें कब?
चलाना संभलकर
चप्पू, नदी की तेज है धारा,
किनारों का भरोसा
क्या, न जाने घूँट जायें कब
न कहना राज-ए-दिल
अपना, कभी सूखे सरोवर से
फुहारों का भरोसा
क्या, न जाने फूट जायें कब?
दमकते “रूप” का सोना, हमारी आँख का धोखा
सितारों का भरोसा
क्या, न जाने टूट जायें कब?
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
रविवार, 21 अप्रैल 2013
"1700वीं पोस्ट-बहारों का भरोसा क्या?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
बहुत बढ़िया, शास्त्री साहब..
जवाब देंहटाएंन कहना राज-ए-दिल अपना, कभी सूखे सरोवर से
जवाब देंहटाएंफुहारों का भरोसा क्या, न जाने फूट जायें कब?...behatrin , superb
दमकते “रूप” का सोना, हमारी आँख का धोखा
जवाब देंहटाएंसितारों का भरोसा क्या, न जाने टूट जायें कब?
कमल नेत्र बन निस्पृह भाव से दुनिया को देख .धोखा मत खा .साक्षी बन .बढ़िया प्रस्तुति .
बहारों का भरोसा क्या, न जाने रूठ जायें कब?
जवाब देंहटाएंसहारों का भरोसा क्या, न जाने छूट जायें कब?
1700वीं पोस्ट के लिए बधाई और शुभकामनाए ,,
१७०० पोस्टों का पिटारा है आपका ब्लॉग ...
जवाब देंहटाएंबधाई इस पोस्ट पे ... बहुत बहुत शुभकामनायें ...
bahut sundar rachna
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई....शुभकामनायें ...
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि क़ी चर्चा सोमवार [22.4.2013]केएक ही गुज़ारिश :चर्चामंच 1222 पर
जवाब देंहटाएंलिंक क़ी गई है,अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए पधारे आपका स्वागत है |
सूचनार्थ..
बहुत ख़ूब शास्त्री जी! बहुत-बहुत बधाई!
जवाब देंहटाएं1700 tareefein bhee kamm hain...bhagwan kare 17000th post bhee jaldee aaye!!
जवाब देंहटाएंvery nice and Jabardast ,meri taraf se 100/100
जवाब देंहटाएंअज़ब हैं रंग दुनिया के, अज़ब हैं ढंग लोगों के
जवाब देंहटाएंइशारों का भरोसा क्या, न जाने लूट जायें कब?
1700वीं पोस्ट के लिए बधाई और शुभकामनाए
latest post सजा कैसा हो ?
latest post तुम अनन्त
शुभकामनायें गुरुवर-
जवाब देंहटाएंबहारों का भरोसा क्या, न जाने रूठ जायें कब?
जवाब देंहटाएंसहारों का भरोसा क्या, न जाने छूट जायें कब?
बहुत - बहुत बधाई ... 1700वीं पोस्ट के लिये
सादर
uff
जवाब देंहटाएंhamari to sir abhi 100 bhi nahi hue..
aapne 1700 :)
sachin tendulkar ho aap to :)
badhai.......
सुन्दर रचना...1700 पोस्ट के लिय आप को हार्दिक शुभकामनाये...
जवाब देंहटाएं1700 वीं पोस्ट के लिये कोटि कोटि बधाई
जवाब देंहटाएंmy big guide
बहुत सुंदर...शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंvary good information thank you
जवाब देंहटाएं