करतूतों को देख हमारी होता वो शरमिन्दा है।।
बाबू-अफसर-नेता करते, खुलेआम रिश्वतखोरी,
जिनका खाते माल, उन्हीं से करते हैं सीनाजोरी,
मक्कारी के जालों में, उलझा मासूम परिन्दा है।
करतूतों को देख हमारी होता वो शरमिन्दा है।।
माँ-बहनों की लज्जा लुटती, गलियों में-बाजारों में,
गुण्डागर्दी करने वाले, शामिल हैं सरकारों में,
लालन-पालन करने वाला, परेशान कारिन्दा है।
करतूतों को देख हमारी होता वो शरमिन्दा है।।
लोकतन्त्र में शासन करने के, सब ही अधिकारी हैं,
कुटुम-कबीलों की इसमे, क्यों होती भागीदारी हैं,
कब छोड़ोगे सिंहासन को कहता हर बाशिन्दा है।
करतूतों को देख हमारी होता वो शरमिन्दा है।।
ओछी गगरी घनी छलकती, भरी हुई चुपचाप रहे,
जिसकी दाढ़ी में तिनका है, वही ज्ञान की बात कहे,
घोटाले करने वाला ही, करता चुगली-निन्दा है।
करतूतों को देख हमारी होता वो शरमिन्दा है।।
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मंगलवार, 16 अप्रैल 2013
"बूढ़ा बरगद जिन्दा है..." (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अपनी करतूतों में डूबे, कल को कितना भूल गये हम।
जवाब देंहटाएंआज के संदर्भ की क्लासिक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
अभी गाँव के देवालय में बूढ़ा बरगद जिन्दा है।
जवाब देंहटाएंकरतूतों को देख हमारी होता वो शरमिन्दा है।।
Wah-wah, Sab kuch ye do laayine kah gai.
सारगर्भित रचना ....अर्थपूर्ण पंक्तियाँ .
जवाब देंहटाएंसटीक एवं सामयिक रचना -सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंlatest post"मेरे विचार मेरी अनुभूति " ब्लॉग की वर्षगांठ
latest post वासन्ती दुर्गा पूजा
sundar rachana . aaj ke parivesh men sahi hai ... abhaar
जवाब देंहटाएंak kadvi sachhayee ko vya kari behatareen prastuti,माँ-बहनों की लज्जा लुटती, गलियों में-बाजारों में,
जवाब देंहटाएंगुण्डागर्दी करने वाले, शामिल हैं सरकारों में,
लालन-पालन करने वाला, परेशान कारिन्दा है।
करतूतों को देख हमारी होता वो शरमिन्दा है।।
लोकतन्त्र में शासन करने के, सब ही अधिकारी हैं,
कुटुम-कबीलों की इसमे, क्यों होती भागीदारी हैं,
कब छोड़ोगे सिंहासन को कहता हर बाशिन्दा है।
आज का सच देखकर .. सच में शर्मिंदा होगा.. :(
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
आज कि हकीकत को बयाँ करती सटीक रचना !!
जवाब देंहटाएंवाह !!! बेहद सटीक ,बेहतरीन रचना,आभार,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : क्यूँ चुप हो कुछ बोलो श्वेता.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (17-04-2013) के "साहित्य दर्पण " (चर्चा मंच-1210) पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
सूचनार्थ...सादर!
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंकाश हम सब लो एक नया बदलाव ला सकें.
जवाब देंहटाएं.एक एक बात सही कही है आपने .भावात्मक अभिव्यक्ति ह्रदय को छू गयी आभार नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें दादा साहेब फाल्के और भारत रत्न :राजनीतिक हस्तक्षेप बंद हो . .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-1
जवाब देंहटाएंकब छोड़ोगे सिंहासन को कहता हर बाशिन्दा है?
जवाब देंहटाएंसबके मन में यह प्रश्न है .
बहुत बेवाक विचार रखती रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
वाह-वाह...
जवाब देंहटाएंवर्तमान सन्दर्भों में आज के तंत्र की बेबाकी से बखिया उधेड़ती एक सशक्त रचना ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंआज के परिवेश के अनुसार सटीक रचना | आभार
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
सारगर्भित कविता .....
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंआभार गुरुवर -
जवाब देंहटाएंगहरी संवेदनाओं से प्रसूत है यह रचना .
भोगवाद की भेंट चढ़ते हमारे संस्कारों पर आंख खोलने वाली रचना है।
जवाब देंहटाएंमाँ-बहनों की लज्जा लुटती, गलियों में-बाजारों में,
जवाब देंहटाएंगुण्डागर्दी करने वाले, शामिल हैं सरकारों में,
बहुत सुन्दर....बेहतरीन प्रस्तुति
पधारें बेटियाँ ...
बहुत खूब
जवाब देंहटाएं