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शनिवार, 1 नवंबर 2014
"संस्मरण-मेरी प्यारी जूली" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत ही संवेदनशील रोचक संस्मरण...
जवाब देंहटाएंरोचक और मार्मिक संस्मरण ! पशु-प्रेम आज के युग में पूर्ण मौलिक है !
जवाब देंहटाएंsach me ye jeev hamari raksha ke liye kuchh bhi karne ko taiyar rahte hain .rochak sansmaran .
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जवाब देंहटाएंजूली और मेरे अंदर एक ही चेतना है अंतर पूर्व जन्म की वासनाओं का है उसे भोग योनि मिली मुझे कर्म की अब मेरी मर्जी मैं अच्छा करू या बुरा कबीर बनूँ या ओसामा की औलाद।
बहुत रोचक संस्मरण
जवाब देंहटाएंसुंदर !
जवाब देंहटाएंRochak prastuti... Janwar behad wafadar hote hain ... Chit sunder hai bahut hi !!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया संस्मरण
जवाब देंहटाएंजीव जंतु भी स्नेह और प्रेम के भूखे होते हैं
सादर !
आपकी लेखनी में जादू है सर जी
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