लालन-पालन में दिया, ममता और दुलार।
बोली-भाषा को सिखा, माँ करती उपकार।।
हर हालत में जो रहे, कोमल और उदार।
पत्नी-बेटी-बहन का, नारी देती प्यार।।
मत अबला कहना कभी, मातृशक्ति बलयुक्त।
कभी नहीं हो पायेंगे, इसके ऋण से मुक्त।।
होता है सन्तान का, सीधा है सम्वाद।
माता को करते सभी, दुख आने पर याद।।
जगदम्बा के रूप में, रहती है हर ठाँव।
माँ के आँचल में सदा, होती सुख की छाँव।।
नारायण से भी बड़ी, नारी की है जात।
सृजन कर रही सृष्टि का, इसीलिए है मात।।
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गुरुवार, 20 नवंबर 2014
"मातृशक्ति-कुछ दोहे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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माँ को समर्पित बहुत अच्छी रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना !बधाई
जवाब देंहटाएंआईना !