मित्रों।
कवि देवदत्त "प्रसून" आज हमारे बीच नहीं हैं।
लेकिन उनका साहित्य अमर रहेगा।
--
डोर तुम्हारे हाथों में (देवदत्त प्रसून)मेरी साँस की डोर तुम्हारे हाथों में ।
है दामन
का छोर तुम्हारे हाथों में ।।
प्यासा जैसे रहा
हो कोई सावन में -
खडा लिये
उम्मीद जैसे आँगन
में ।।
तुम आये
मन भीग उठा, आनन्द
मिला -
मैं
हूँ हर्ष विभोर, प्रेम
सौगातों में ।
नाच उठे ज्यों मोर सघन बरसातों में ।।1।।
लम्बी
बिरह के बाद तुम्हारी पहुनाई ।
जैसे
बादल हटे पूर्णिमा खिल
आयी ।।
बिखरा सुन्दर
हास,धरा के
आँचल में -
ज्यों खुश
हुए चकोर , चाँदनी
रातों में ।।2।।
मिलन की वीण से पीडित मन बहलाओ ।
तार प्यार
के धीरे धीरे
सहलाओ ।।
अँगुली का
वरदान जगे मीठी सरगम ।
छुपे हैं मीठे
शोर, मधुर
आघातों में ।
डूबी हर
टंकोर ,मृदुल
सुर सातों में ।।3।।
मैंने मन की
कह ली, तुम भी बोलो तो
।
मेरे कानों में भी मधु रस घोलो तो ।।
है मिठास मिसरी सी कितनी स्वाद भरी -
हे प्रियतम
चितचोर , तुम्हारी
बातों में ।
सुख मिल
गयाअथोर ,स्नेह
के नातों में ।।4 ।।
"प्रसून
"तेरी याद इस तरह मन में है -
मीठी
मीठी गन्ध महकती सुमन में है ।।
कोई
सुन्दर मोती मानों सीप में हो -
उतरे जैसे
हंस बगुल की
पाँतों में ।
या शबनम
की बूँद कमल की पाँतों में।।5।।
|
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बुधवार, 26 नवंबर 2014
"साँस की डोर-देवदत्त 'प्रसून' " (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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विनम्र श्रद्धाँजलि। एक उच्च कोटि के कवि ब्लागर के साथ हमने एक अच्छा पाठक भी खो दिया ।
जवाब देंहटाएंसादर श्रद्धांजलि..।।
जवाब देंहटाएंसादर श्रद्धा सुमन!
जवाब देंहटाएंविनम्र सादर श्रद्धाँजलि...!
जवाब देंहटाएंनमन
जवाब देंहटाएंसादर नमन !
जवाब देंहटाएंइतनी सुन्दर रचना किसी प्रबुद्ध आत्मा की ही हो सकती है ,उन्हें देरों नमन
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार !
"प्रसून "तेरी याद इस तरह मन में है -
जवाब देंहटाएंमीठी मीठी गन्ध महकती सुमन में है ।।
कोई सुन्दर मोती मानों सीप में हो -
उतरे जैसे हंस बगुल की पाँतों में ।
या शबनम की बूँद कमल की पाँतों में।।5।।
श्रधांजलि