गठबन्धन की नाव को, कौन करेगा पार।।
ताल-मेल कुछ भी नहीं, गर्दिश में है
कार।
छीना-झपटी से नहीं, चलती है सरकार।।
मिल-जुलकर सबने चुनी, सबसे बढ़िया
कार।
लेकिन चलने में हुई, कार बहुत लाचार।।
बोनट पर बैठे कई, भीतर कई सवार।
बात एकता की करें, सारे नम्बरदार।।
तू-तू, मैं-मैं का लगा, जब से मन में
रोग।
वानर जैसी हरकतें, तब से करते लोग।।
मुखियाओं के हों जहाँ, मन में भरे
विकार।
राजनीति के खेत की, कैसे भरे दरार।।
अपने दावे सब करें, खूब करें तकरार।
अच्छे नहीं भविष्य के, लगते हैं आसार।।
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गुरुवार, 21 जून 2018
दोहे "सारे नम्बरदार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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मुखियाओं के हों जहाँ, मन में भरे विकार।
जवाब देंहटाएंराजनीति के खेत की, कैसे भरे दरार।।
अपने दावे सब करें, खूब करें तकरार।
अच्छे नहीं भविष्य के, लगते हैं आसार।।
जितने नम्बरदार, उतना बंटाधार
गले गले तक स्वार्थ में डूबे क्या भला करेंगे देश का,
बहुत सही सामयिक प्रस्तुति