चौमासे का मौसम आया, सूरज ने तन-मन झुलसाया। तन से टप-टप बहे पसीना, गरमी ने भी रंग जमाया। ऐसे मौसम में पेड़ों पर, फल छा जाते हैं रंग-रंगीले। उमस मिटाते हैं तन-मन की, खाने में हैं बहुत रसीले। ककड़ी-खीरा और खरबूजा, प्यास बुझाता है तरबूजा। जामुन पाचन करने वाली, लीची मीठे रस का कूजा। आड़ू और खुमानी भी तो, सबके मन को बहुत लुभाते। आलूचा-काफल के भी, हमें बहुत ही हैं ललचाते। कुसुम दहकते हैं बुराँश पर, लगता मोहक यह नज़ारा। इन फूलों के रस का शर्बत, शीतल करता बदन हमारा। आँगन और बगीचों में कुछ, फल वाले बिरुए उपजाओ। सुख से रहना अगर चाहते, पेड़ लगाओ-धरा बचाओ। -- |
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मंगलवार, 19 जुलाई 2022
बालकविता "चौमासे का मौसम आया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह लाजबाव सृजन
जवाब देंहटाएंबाल-गीत विधा तो अब मानो लुप्त ही हो गई है। ऐसे समय में यह गीत सुखद अतीत की बॉंहों में झुला गया।
जवाब देंहटाएंसामयिक फलों सब्जियों का ज्ञान देता बहुत सुंदर सराहनीय गीत ।
जवाब देंहटाएं'पेड़ लगाओ, धरा बचाओ' वाह ! स्वादिष्ट फलों के ज़ायके के साथ सुन्दर सन्देश !
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