यदि गद्य का नियम व्याकरण है तो निश्चितरूप से काव्य का आधारभूत नियम छन्द ही है। शब्दों को गेयता के अनुसार सही स्थान पर रखने से कविता बनती है। अर्थात् जिसे स्वर भरकर गाया जा सके वो काव्य कहलाता है। इसीलिए काव्य गद्य की अपेक्षा जल्दी कण्ठस्थ हो जाता है। गद्य में जिस बात को बड़ा सा आलेख लिखकर कहा जाता है, पद्य में उसी बात को कुछ पंक्तियों में सरलता के साथ कह दिया जाता है। यही तो पद्य की विशेषता होती है। काव्य में गीत, ग़ज़ल, आदि ऐसी विधाएँ हैं। जिनमें गति-यति, तुक और लय का ध्यान रखना जरूरी होता है। लेकिन दोहा-चौपाई, रोला आदि मात्रिक छन्द हैं। जिनमें मात्राओं के साथ-साथ गणों का भी ध्यान रखना आवश्यक होता है। तभी इन छन्दों में गेयता आती है। अन्तर्जाल पर मैंने यह अनुभव किया है कि नौसिखिए लोग दोहा छन्द में मात्राएँ तो पूरी कर देते हैं मगर छन्दशास्त्र के अनुसार गणों का ध्यान नहीं रखते हैं। इसीलिए उनके दोहों में प्रवाह नहीं आ पाता है और लय भंग हो जाती है। · मात्रिक छन्द ː जिन छन्दों में मात्राओं की संख्या निश्चित होती है उन्हें मात्रिक छन्द कहा जाता है। जैसे - दोहा, रोला, सोरठा, चौपाई । उदाहरण के लिए मेरा एक दोहा देखिए- फसल धान की खेत में, लहर-लहर लहराय। अपने मन के छन्द को, रचते हैं कविराय।। · वार्णिक छन्द ː वर्णों की गणना पर आधारित छन्द वार्णिक छन्द कहलाते हैं। जैसे - घनाक्षरी, दण्डक। घनाक्षरी चन्द का एक उदाहरम देखिए- विद्या वो भली है जो हो क्षमता के अनुसार, मान व सम्मान भला लगे सद-रीत का| रिश्ते हों या नाते सभी, सीमा तक लगें भले, गायन रसीला भला, भव-हित गीत का| शूरता लगे है भली समय की 'कविदास', उम्र की जवानी भली, संग सच्चे मीत का| श्रद्धा वाली भक्ति भली, सम्भव विरक्ति भली, रोना भला मौके का व गौना भला शीत का|| · वर्णवृत ː सम छन्द को वृत कहते हैं। इसमें चारों चरण समान होते हैं और प्रत्येक चरण में आने वाले लघु गुरु मात्राओं का क्रम निश्चित रहता है। जैसे - द्रुतविलंबित, मालिनी। उदाहरण देखिए- इसका अर्थ है कि मालिनी छन्द में प्रत्येक चरण में नगण, नगण, मगण और दो यगणों के क्रम से 15 वर्ण होते हैं और इसमें यति आठवें और सातवें वर्णों के बाद होती है; जैसे : । ॥ । ॥ ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ । ऽ ऽ वयमिह परितुष्टाः वल्कलैस्त्वं दुकूलैः सम इह परितोषो निर्विशेषो विशेषः । स तु भवति दरिद्रो यस्य तृष्णा विशाला मनसि तु परितुष्टे कोऽर्थवान् को दरिद्रः॥ वैराग्यशतक /45 · मुक्त छन्दː भक्तिकाल तक मुक्त छन्द का अस्तित्व नहीं था, यह आधुनिक युग की देन है। इसके प्रणेता सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' माने जाते हैं। मुक्त छन्द नियमबद्ध नहीं होते, केवल स्वछन्द गति और भावपूर्ण यति ही मुक्त छन्द की विशेषता हैं। |
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शुक्रवार, 29 जुलाई 2022
आलेख "छन्द परिचय" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुंदर उपयुक्त जानकारी वाली प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और उपयोगी जानकारी। सार्थक प्रस्तुति के लिए आपका बहुत-बहुत आभार।
जवाब देंहटाएं'काव्य का आधारभूत नियम छन्द ही है'। पद्य लेखन के विषय में उपयोगी जानकारी, आभार!
जवाब देंहटाएंछन्दों के बारे में रोचक जानकारी और सुंदर उदाहरण
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