मनमानी करने लगे, घर में
बरखुरदार। मूँछ ऐंठने का समय, नहीं रहा सरदार।। -- देशद्रोह-हिंसा करें, कुछ
शातिर शौकीन। भारत के कानून की, करते हैं
तौहीन।। -- कठमुल्ला अब धर्म के, बने
हुए अधिराज। बदल रहा है इसलिए, लोगों का
अन्दाज।। -- परस रहे हैं मौलवी, मकतब में
अज्ञान। आका बनकर कौम के, सुना रहे
फरमान।। -- कट्टरपन्थी का नहीं, यहाँ
चलेगा राज। करना है इस रोग का, अब तो
सही इलाज।। -- समझाने का काल अब, निकल
गया है दूर। उम्र कैद उनको मिले, जो
जुल्मी-मगरूर।। छोड़ दीजिये शासकों, लाड़-प्यार
की रीत। सभी जगह लागू करो, बुलडोजर
की नीति।। -- |
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बुधवार, 27 जुलाई 2022
दोहे "बुलडोजर की नीति" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.7.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4504 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग
समझाने का काल अब, निकल गया है दूर।
जवाब देंहटाएंउम्र कैद उनको मिले, जो जुल्मी-मगरूर।।
--
छोड़ दीजिये शासकों, लाड़-प्यार की रीत।
सभी जगह लागू करो, बुलडोजर की नीति।।
. .एकदम सही बात