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मंगलवार, 27 अक्टूबर 2009
"प्यार माँगता हूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंरामराम.
मैं स्नेहसिक्त पावन परिवार माँगता हूँ।
जवाब देंहटाएंमंजिल से प्यार का ही उपहार माँगता हूँ।।
सारगर्भित रचना
ananda aa gaya
जवाब देंहटाएंमैं स्नेहसिक्त पावन परिवार माँगता हूँ, एक बार फिर आप लाये माधुर्य को घोल इतनी सुन्दर प्रस्तुति जिसकी हर पंक्ति रसभरी, आभार ।
जवाब देंहटाएंwaah waah.............bahut sundar likha ..........mishri si ghol di.
जवाब देंहटाएंयह प्रीत की है डोरी,
जवाब देंहटाएंममता की मीठी लोरी.
मैं स्नेहसिक्त पावन परिवार माँगता हूँ।
मंजिल से प्यार का ही उपहार माँगता हूँ।।
बहुत सुंदर !
यह प्रीत की है डोरी,
जवाब देंहटाएंममता की मीठी लोरी.
मैं स्नेहसिक्त पावन परिवार माँगता हूँ।
मंजिल से प्यार का ही उपहार माँगता हूँ।।
bahut hi sunder.........rachna
अनजान सा नगर हैं,
जवाब देंहटाएंचन्दा से चाँदनी का आधार माँगता हूँ।
मंजिल से प्यार का ही उपहार माँगता हूँ।।
Bahut sundar abhivyakti..badhiya laga padh kar...dhanywaad
बहुत बहुत स्वागत और अभिनन्दन इस अनुपम रचना का...........
जवाब देंहटाएंवाह !
प्यार मांगता हूँ को जीवन्त कर दिया आपने..........
सुन्दर chitron से सजी ..... लाजवाब रचना है ........ राम राम शास्त्री जी .............
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंउठते नहीं हैं हाथ मेरे इस दुआ के बाद ...
जवाब देंहटाएंमैं स्नेहसिक्त पावन परिवार माँगता हूँ।
मंजिल से प्यार का ही उपहार माँगता हूँ।।
सब कुछ तो मांग लिया ...!!
खुबसूरत सुबह सा खुबसूरत गीत.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंकिरणों से रोशनी का संसार माँगता हूँ।
जवाब देंहटाएंमंजिल से प्यार का ही उपहार माँगता हूँ।।
मनमोहक चित्रो से लैस खूबसूरत रचना
बहुत सुन्दर
सुन्दर चित्रमय रचना.
जवाब देंहटाएंमैं स्नेहसिक्त पावन परिवार माँगता हूँ।
जवाब देंहटाएंमंजिल से प्यार का ही उपहार माँगता हूँ।।
बहुत सुंदर रचना,
धन्यवाद
बहुत अच्छी कामना है यह
जवाब देंहटाएंआपने बेहद सुंदर रचना लिखा है ! इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई !
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