अब हवाओं में फैला गरल ही गरल। क्या लिखूँ ऐसे परिवेश में मैं गजल।। गन्ध से अब, सुमन की-सुमन है डरा भाई-चारे में, कितना जहर है भरा, वैद्य ऐसे कहाँ, जो पिलायें सुधा- अब तो हर मर्ज की है, दवा ही अजल। क्या लिखूँ ऐसे परिवेश में मैं गजल।। धर्म की कैद में, कर्म है अध-मरा, हो गयी है प्रदूषित, हमारी धरा, पंक में गन्दगी तो हमेशा रही- अब तो दूषित हुआ जा रहा, गंग-जल। क्या लिखूँ ऐसे परिवेश में मैं गजल।। आम, जामुन जले जा रहे, आग में, विष के पादप पनपने, लगे बाग मे, आज बारूद के, ढेर पर बैठ कर- ढूँढते हैं सभी, प्यार के चार पल। क्या लिखूँ ऐसे परिवेश में मैं गजल।। आओ! शंकर, दयानन्द विष-पान को, शिव अभयदान दो, आज इन्सान को, जग की यह दुर्गति देखकर, हे प्रभो! नेत्र मेरे हुए जार हे हैं, सजल । क्या लिखूँ ऐसे परिवेश में मैं गजल।। |
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सोमवार, 17 मई 2010
“गरल ही गरल” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंhttp://madhavrai.blogspot.com/
http://qsba.blogspot.com/
माना बहुत ज्यादा है गरल
जवाब देंहटाएंपर इसको करना है तरल
इसलिये शास्त्री जी आपको
लिखनी ही पड़ेगी गज़ल
jai ho..........
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंशानदार।
जवाब देंहटाएंमैं वर्मा जी से सहमत हूँ !!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब साहब....
जवाब देंहटाएंhriday ka sara dard ubhar kar aa gaya hai.
जवाब देंहटाएंभाई-चारे में, कितना जहर है भरा,
जवाब देंहटाएंधर्म की कैद में, कर्म है अध-मरा,
गरल ही गरल भरा ...
वर्तमान समय को उकेरा है आपने अपनी कविता में ...!!
धर्म की कैद में, कर्म है अध-मरा,
जवाब देंहटाएंहो गयी है प्रदूषित, हमारी धरा,
पंक में गन्दगी तो हमेशा रही-
अब तो दूषित हुआ जा रहा, गंग-जल।
क्या लिखूँ ऐसे परिवेश में मैं गजल।।
...सार्थक,यथार्थ प्रस्तुति के लिए धन्यवाद ...
bahut khoob Albela ji ne bhi achcha likha kuch aisa hi...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआओ! शंकर, दयानन्द विष-पान को,
जवाब देंहटाएंशिव अभयदान दो, आज इन्सान को,
जग की यह दुर्गति देखकर, हे प्रभो!
नेत्र मेरे हुए जार हे हैं, सजल ।
क्या लिखूँ ऐसे परिवेश में मैं गज़ल...
बहुत सुन्दर भाव....सच को उजागर करती रचना
सार्थक,यथार्थ प्रस्तुति के लिए धन्यवाद ...
जवाब देंहटाएंWaah....Bahut hi sundar aur sarthak rachna...
जवाब देंहटाएंBahut bahut sundar...
शिव अभयदान दो, आज इन्सान को,
जवाब देंहटाएंउत्तम आलेख
श्रीकृष्ण जोशी 'नक़्शे नवीस' प्रसिद्ध साहित्यकार एवं व्यंगकार 'पद्मश्री' स्व. श्री शरद जोशी के ताउजी थे| श्री शरद जोशी बचपन से ही अपने ताउजी की काव्य एवं साहित्य के प्रति साधना में काफी रूचि रखते थे जिसे उन्होंने कालांतर में अपने जीवन में संचरित करते हुवे हिन्दी साहित्य की और प्रेरितहुवे और अपनी जीवन रेखा के रूप में अंगीकार किया|
जवाब देंहटाएंस्व. श्रीकृष्ण जोशी 'नक़्शे नवीस' की रचनायें को पढ़कर यह आभास होता है कि वे हिन्दी साहित्य के एक ऐसे सूर्य हैं जिसका आलोक सदैव हिन्दी जगत् को प्रकाशवान करता रहेगा।
निवेदन है कि, निम्नांकित ब्लॉग को पढ़ें व् अपनी टिप्पणी से अवगत करावें.
http://shreekrishnajoshi.blogspot.com/
Blogger: Akhilesh S Joshi
Grandson of Shreekrishna Joshi 'Nakshe Navees'