किया बहुत था प्यार हमेशा हमने सौतेलों को, किन्तु उन्होंने हमको भाई नहीं माना! -- लाड़-चाव से हाथ थाम कर चलना जिन्हें सिखाया था, जीवन में आगे बढ़ने का पथ जिनको दिखलाया था, हमने उन्हें अनुज माना था, किन्तु उन्होंने अपना कभी नही जाना! -- रची साजिशें गन्दी-गन्दी, हमने सब कुछ सहन किया, छोटा भाई समझकर हमने, अब तक सब कुछ वहन किया, किन्तु हमारे बल को अब तक, नही उन्होंने पहचाना! -- वो धमकी पर धमकी देते हमने नही उन्हें धमकाया, किन्तु उन्होंने उदारता का, नाजाइज है लाभ उठाया, अन्तिम चेतावनी हमारी, कर देंगे गुलशन वीराना! |
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शुक्रवार, 21 मई 2010
“कर देंगे गुलशन वीराना” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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हमारी अच्छाइयों को ,इंसानियत को जब कोई हमारी कमजोरी समझ लेता है ,तब इसी तरह पीड़ा होती है . कहती हूँ 'ना छेड़ बार बार कि वो भी नही हूँ मैं , जो तू समझने की भूल कर बैठा है '
जवाब देंहटाएंहा हा हा
एकदम मेरे जैसे ही खयालात किन्तु
कुछ तो अंतर रहना ही चाहिए 'उनमे ' और 'हम में '
आपकी कविता अच्छी लगी,आपके व्यक्तित्व को दर्शाती है.
आप सौतेलों की बात करते हैं ...
जवाब देंहटाएंलोग तो सगों से जख्म खाते हैं ...!!
@ indu puri jee ,
कहती हूँ 'ना छेड़ बार बार कि वो भी नही हूँ मैं , जो तू समझने की भूल कर बैठा है '..
waah ...!!
आज बहुत गुस्सा है..
जवाब देंहटाएं"किया बहुत था प्यार हमेशा
जवाब देंहटाएंहमने सौतेलों को,
किन्तु उन्होंने
हमको भाई नहीं माना! "
आज के जीवन की कडवी सच्चाई दर्शाती रचना !!
मै भी इंदु पुरी जी की टिफ्ण्णी से सहमत हुं.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद इस सुंदर कविता के लिये
aaj to apne bhi nahi pehchaante sautelon se kya umeed ki jaaye...
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय रचना - बधाई
जवाब देंहटाएंbahut sundar bhav...........aaj ke halat ka sahi chitran.
जवाब देंहटाएंवो शायद ये नहीं समझते की जो उनको बना सकते हैं एक दिन मिटा भी सकते हैं....
जवाब देंहटाएंहम लोग हैं जो हर बार गलतियाँ माफ करते जा रहे हैं...पर कब तक? बहुत सार्थक लेखन