पथ पर आगे बढ़ते-बढ़ते, अब जीवन की शाम हो गई! पोथी जग की पढ़ते-पढ़ते, सारी उम्र तमाम हो गई!! जितना आगे कदम बढ़ाया, मंजिल ने उतना भटकाया, मन के मनके जपते-जपते, माला ही भगवान हो गई! पोथी जग की पढ़ते-पढ़ते, यों ही उम्र तमाम हो गई!! चिढ़ा रही मुँह आज नव्यता, सुबक-सुबक रो रही भव्यता, गीत-गज़ल को रचते-रचते, नैतिकता नीलाम हो गई! पोथी जग की पढ़ते-पढ़ते, यों ही उम्र तमाम हो गई!! स्वरलहरी अब मन्द हो गई, नई नस्ल स्वच्छन्द हो गई, घर की बातें रही न घर में, दुनियाभर में आम हो गई! पोथी जग की पढ़ते-पढ़ते, यों ही उम्र तमाम हो गई!! |
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बुधवार, 19 मई 2010
“उम्र तमाम हो गई” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक)
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uttam kaavya,,,,,,,,,,,,,,,
जवाब देंहटाएंbadhaai !
"स्वरलहरी अब मन्द हो गई,
जवाब देंहटाएंनूतन नस्ल स्वछन्द हो गई,
घर की बातें रही न घर में,
दुनियाभर में आम हो गई!
पोथी जग की पढ़ते-पढ़ते,
यों ही उम्र तमाम हो गई!!"
जी सारा अनुभव ही निचौड़ दिया!
कुंवर जी,
सुन्दर अभिव्यक्ति, अभिनन्दन !
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावुक और दर्शन से भरी कविता है , वैसे ही जैसे गीत नया गाता हूँ .
जवाब देंहटाएंhttp://madhavrai.blogspot.com/
बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंपोथी जग की पढ़ते-पढ़ते,
जवाब देंहटाएंसारी उम्र तमाम हो गई!
तजुर्बे हुए हैं....उम्र तमाम नहीं हुई
स्वरलहरी अब मन्द हो गई,
नूतन नस्ल स्वछन्द हो गई,
घर की बातें रही न घर में,
दुनियाभर में आम हो गई
ये बात कोई अनुभवी ही लिख सकता है....
उत्तम रचना ..
शास्त्री जी आप इतना निराशावादी ना हों ,क्योकि आपके अनुभव और सुझाव की हमें जरूरत है / नैतिकता ही हम सबको और इस देश को बचा सकता है / बस जरूरत है एकजुट होने की / उम्दा प्रस्तुती /
जवाब देंहटाएंस्वरलहरी अब मन्द हो गई,
जवाब देंहटाएंनूतन नस्ल स्वछन्द हो गई,
घर की बातें रही न घर में,
दुनियाभर में आम हो गई!
पोथी जग की पढ़ते-पढ़ते,
यों ही उम्र तमाम हो गई!!
शास्त्री जी लोग इतनी बात समझाने में बड़ी-बड़ी पोस्ट घिस देते हैं आपने चार लाइन में कह दिया।
आपकी लेखनी को सलाम!!!!
घर की बातें रही न घर में,
जवाब देंहटाएंदुनियाभर में आम हो गई!
बहुत खूब
हमें फक्र है कि कोशिशे हमारी नाकाम नहीं हुई
जवाब देंहटाएंजिन्दगी जी भर के जी है, उम्र तमाम नहीं हुई
kavita to bahut acchi hai...lekin kahin man ki peeda ko bhi darsha rahi hai...shayad jeewan ka arth hi yahi hai...lekin taal-mel to rakhna hi hoga...
जवाब देंहटाएंbahut vichaarpoorn kavita hai...jeewan ke anubhavon ke karan hi likhi gayi hai...
aapka aabhaar...
बहुत सुंदर रचना जी. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंवाह वाह............बेहतरीन अभिव्यक्ति...............क्या बात कही है.....गज़ब कर दिया.
जवाब देंहटाएंwaah laybadhdh kaavya...bahut sundar...
जवाब देंहटाएंthis is very nice...guru ji..
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी बहुत खूब सुंदर विचारों से सजी एक बेहतरीन कविता ..लयबद्धता के साथ पढ़ने का मज़ा ही कुछ और है..लाज़वाब कविता..बधाई
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी अब हम आ गए हैं हम मिलकर सब गद्दारों का नाश करेंगे
जवाब देंहटाएंक्या करोगे हमारा मार्गदर्शन जी
बहुत बढ़िया लय से सजा प्रभावशाली गीत!
जवाब देंहटाएं--
बौराए हैं बाज फिरंगी!
हँसी का टुकड़ा छीनने को,
लेकिन फिर भी इंद्रधनुष के सात रंग मुस्काए!
नमन आपको !!
जवाब देंहटाएंlajwaab likh aap ne.
जवाब देंहटाएं"स्वरलहरी अब मन्द हो गई,
जवाब देंहटाएंनई नस्ल स्वच्छन्द हो गई,
घर की बातें रही न घर में,
दुनियाभर में आम हो गई!
पोथी जग की पढ़ते-पढ़ते,
यों ही उम्र तमाम हो गई!!"
ज़बरदस्त कविता, बहुत खूब! आपकी लेखनी से प्रतीत होता है की आप ज़मीन से जुड़े हुए रचनाकार हैं. आपकी रचनाएँ पढ़कर दिल को बहुत ख़ुशी मिली.
बहुत भावना पूर्ण .. जीवन दर्शन से भरी रचना है ....
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