वानर बैठा है कुर्सी पर, हुई बिल्लियाँ मौन! अन्धा है कानून हमारा, न्याय करेगा कौन? लुटी लाज है मिटी शर्म है, अनाचार में लिप्त कर्म है, बन्दीघर में बन्द धर्म है, रिश्वत का बाजार गर्म है, हुई योग्यता गौण! अन्धा है कानून हमारा, न्याय करेगा कौन? घोटालों में भी घोटाले, गोरों से बढ़कर हैं काले, अंग्रेजी को मस्त निवाले, हिन्दी को खाने के लाले, मैकाले हैं द्रोण! अन्धा है कानून हमारा, न्याय करेगा कौन? संसद में ज्यादातर गुण्डे, मन्दिर लूट रहे मुस्तण्डे, जात-धर्म के बढ़े वितण्डे, वार बन गये सण्डे-मण्डे, पनप रहे हैं डॉन! अन्धा है कानून हमारा, न्याय करेगा कौन? |
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मंगलवार, 18 मई 2010
“न्याय करेगा कौन?” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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घोटालों में भी घोटाले,
जवाब देंहटाएंगोरों से बढ़कर हैं काले,
शास्त्री जी बहुत खूब
वाकई ये काले तो गोरों को भी मात दे दिये
आपने आज के समाज और देश का वास्तविक दर्द बयाँ किया है / लेकिन शास्त्री जी सबसे बड़ा कारण है, लोगों में बैठा डर और झूठी जीने की चाह ,जिसके वजह से लोग किसी भी न्याय और सच का साथ नहीं देना चाहते हैं /
जवाब देंहटाएंघोटालों में भी घोटाले,
जवाब देंहटाएंगोरों से बढ़कर हैं काले,
अंग्रेजी को मस्त निवाले,
हिन्दी को खाने के लाले
सच है न्याय कौन करेगा? सार्थक प्रश्न उठाती सुन्दर रचना
aajkal aapki har rachna mein kafi dard hai aur sahi bhi hai.nyay vyavastha ne to bura hal kar rakha hai.
जवाब देंहटाएंसंसद में ज्यादातर गुण्डे,
जवाब देंहटाएंमन्दिर लूट रहे मुस्तण्डे,
जात-धर्म के बढ़े वितण्डे,
वार बन गये सण्डे-मण्डे,
पनप रहे हैं डॉन!
अन्धा है कानून हमारा,
न्याय करेगा कौन?
सच है !!
एक एक शब्द सत्य है शास्त्री जी ! और एक एक शब्द में जान है...बेहतरीन कविता ...
जवाब देंहटाएंस्थितियां बहुत सोचनीय हैं... दुख और क्षोभ आपके गीत से प्रकट हो रहा है..
जवाब देंहटाएंकमाल है!आप अभी भी न्याय की उम्मीद कर रहे है......
जवाब देंहटाएंवैसे आपकी कविता वर्तमान का चेहरा खूब दिखा दिया है!
कुंवर जी,
इस नवगीत की शुरूआत बहुत बढ़िया हुई है!
जवाब देंहटाएं--
गेयता अंत तक बरकरार है! यही इसकी सबसे महत्त्वपूर्ण ख़ूबी भी है!
--
बौराए हैं बाज फिरंगी!
हँसी का टुकड़ा छीनने को,
लेकिन फिर भी इंद्रधनुष के सात रंग मुस्काए!
वानर बैठा है कुर्सी पर,इसी लिये तो सब उलट पलट हो रहा है.... आप ने एक सत्य लिख दिया.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
करारा व्यंग्य. बधाई.
जवाब देंहटाएंलुटी लाज है मिटी शर्म है,
जवाब देंहटाएंअनाचार में लिप्त कर्म है,
बन्दीघर में बन्द धर्म है,
रिश्वत का बाजार गर्म है,
हुई योग्यता गौण!
अन्धा है कानून हमारा,
न्याय करेगा कौन?
समस्या गंभीर है!
१००% सत्य है महाराज !! बहुत ही उम्दा रचना | बहुत बहुत बधाइयाँ !!
जवाब देंहटाएंएक सच्चाई।
जवाब देंहटाएंआइना दिखाती पोस्ट, बहुत ही बढ़िया।
जवाब देंहटाएंन्याय जरुर मिलेगा , देर है पर अंधेर नहीं है
जवाब देंहटाएंhttp://madhavrai.blogspot.com/
http://qsba.blogspot.com/