न मजमून लिखते, न कुछ बात होती बताओ तो कैसे मुलाकात होती अगर दोस्ती है तो शिकवे भी होंगे न शक कोई होता, न कुछ घात होती अगर तुम न प्यादे को आगे बढ़ाते न शह कोई पड़ती, न फिर मात होती दिखाता न सूरत अगर चाँद अपनी न फिर ईद होती न सौगात होती अगर तुम न छुप-छुपके मिलते चमन में सुहानी न फिर चाँदनी रात होती अगर "रूप" अपना दिखाते न दिलवर न बिजली चमकती न बरसात होती |
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गुरुवार, 19 मई 2011
"ग़ज़ल-...न शह-मात होती" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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अगर तुम न छुप-छुपके मिलते चमन में
जवाब देंहटाएंसुहानी न फिर चाँदनी रात होती
वाह दादा वाह
अगर "रूप" अपना दिखाते न दिलवर
जवाब देंहटाएंन बिजली चमकती न बरसात होती
Wah !!!
Nice .
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/05/main-problem.html
अगर "रूप" अपना दिखाते न दिलवर
जवाब देंहटाएंन बिजली चमकती न बरसात होती "
यह रूप का ही कमाल है शस्त्री जी !
वरना न इश्क होता न जुदाई होती ,
न मिलते न कोई बात होती ..
बहुत ताजगी भरी है आपकी नज्म !!!
सुभानल्लाह
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल!
जवाब देंहटाएंसादर
दिखाता न सूरत अगर चाँद अपनी
जवाब देंहटाएंन फिर ईद होती न सौगात होती
अगर तुम न छुप-छुपके मिलते चमन में
सुहानी न फिर चाँदनी रात होती
wah kya kahne bahut pyaari ghazal.prastuti ke liye aabhar.
bahut khoob babu ji..aabhar
जवाब देंहटाएं"न मजमून लिखते,न कुछ बात होती
जवाब देंहटाएंबताओ तो कैसे मुलाकात होती"
शास्त्री जी,सच को सामने रखकर रोमांटिक होना तो कोई आपसे सीखे. सही कहा आपने प्यादे को अगर न बढ़ने दिया जाए तो शह-मात का खेल तो हो ही नहीं पायेगा.छुप-छुप के मिलने में जो मजा है उसकी दूसरी मिशाल कहाँ? यथार्थ के पोट्रेट पर उकेरी गई रूमानी तस्वीर सी है आपकी गजल.
अगर तुम न छुप-छुपके मिलते चमन में
जवाब देंहटाएंसुहानी न फिर चाँदनी रात होती
waha bahut khub....kya andaz hai aapke likhne ka....bahut hi badiya
दिखाता न सूरत अगर चाँद अपनी
जवाब देंहटाएंन फिर ईद होती न सौगात होत
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति…………शानदार गज़ल्।
अगर "रूप" अपना दिखाते न दिलवर
जवाब देंहटाएंन बिजली चमकती न बरसात होती
वाह ..आज कल बहुत खूबसूरत गज़ल बन रही हैं ...
श्रॆष्ठ लेखनी
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी आप तो ग़ज़ल में भी जलवे दिखा रहे हैं| प्रणाम|
जवाब देंहटाएंतभी मैं कहूँ भाई जी कि 'खटीमा' में बिजली क्यों चमकी और बरसात क्यूँ हुई.हमारी भाभीजी का 'रूप' ही कुछ ऐसा है न .
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई हों भाई जी
दिखाता न सूरत अगर चाँद अपनी
जवाब देंहटाएंन फिर ईद होती न सौगात होती
....बहुत खूब!...बेहतरीन गज़ल..आभार
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल..
जवाब देंहटाएंउम्दा गजल ! आभार एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंaaha ! kya baat hai........
जवाब देंहटाएंnaya navela she'r
अगर तुम न प्यादे को आगे बढ़ाते
न शह कोई पड़ती, न फिर मात होती
bahut khoob shaastri ji.....
badhaai
बहुत सुन्दर गजल….अगर तुम न छुप-छुपके मिलते चमन में
जवाब देंहटाएंसुहानी न फिर चाँदनी रात होती
Lajawaab kar diya aapne.
जवाब देंहटाएं............
खुशहाली का विज्ञान!
ब्लॉगिंग का मनी सूत्र!
वाह-वाह...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल, न बिजली चमकती न बरसात होती।
जवाब देंहटाएंदोस्ती में सब कुछ जायज के सिवा घात के क्योंकि फिर तो वह दोस्ती कहाँ रही ?
जवाब देंहटाएंरोमांस का पक्ष सुन्दर है !
न मजमून लिखते न कुछ बात होती ,
जवाब देंहटाएंबताओ तो कैसे मुलाक़ात होती .
"न यूं दिन निकलता न यूं रात होती ,
अगर तुम न होते हवालात होती "मयंक साहब !आदत सी हो गई है छेड़ खानी की ।
आदत से मजबूर हूँ क्षमा करें . आपका हक़ बनता है .
अगर तुम न प्यादे को आगे बढ़ाते
जवाब देंहटाएंन शह कोई पड़ती, न फिर मात होती
लाजवाब!!