रोज लिखे अफसाने हमने, मगर उठाई नहीं आपने, कभी इन्हें पढ़ने की ज़हमत! जो मन में आता कह जाते, हम हँसते-हँसते सह जाते, किसने कहा रहो तुम सहमत!! कोमल मन पर बोझ लादकर, उड़ न सकोगे नीलगगन पर, नहीं आपके बस की मेहनत! किसने कहा रहो तुम सहमत!! क्यों बैठे गुमसुम उपवन में, कलिका बनकर खिलो चमन में, नाहक ही होते हो आहत! किसने कहा रहो तुम सहमत!! आग दिलों में बनकर बसते, अंगारा से खुलकर हँसते, कुछ तो दिखला देते हिम्मत! किसने कहा रहो तुम सहमत!! कुमुद-कुमुदिनी खिले पंक में, शीतलता होती "मयंक" में, दीवानी होती है चाहत! किसने कहा रहो तुम सहमत!! |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
रविवार, 29 मई 2011
"किसने कहा रहो तुम सहमत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
आग दिलों में बनकर बसते,
जवाब देंहटाएंअंगारा से खुलकर हँसते,
कुछ तो दिखला देते हिम्मत!
किसने कहा रहो तुम सहमत!!
इन पंक्तियो मे जीवन की सच्चाई छुपी हुई है
बहुत खूब ,शास्त्री जी.
जवाब देंहटाएंअसहमति भी सहमति का ही दूसरा पहलू है, दूसरा पक्ष है..
जवाब देंहटाएंजो मन में आता कह जाते,
जवाब देंहटाएंहम हँसते-हँसते सह जाते,
किसने कहा रहो तुम सहमत!!
बहुत अच्छी लगीं ये पंक्तियाँ .
सादर
कोमल मन पर बोझ लादकर,उड़ न सकोगे नीलगगन पर,नहीं आपके बस की मेहनत!किसने कहा रहो तुम सहमत!
जवाब देंहटाएंbahut sundar .
@ जनाब मयंक जी ! आपकी हरेक कली और हरेक बंद अनुपम सा है लेकिन अंत में तो बात ही क्या ख़ूब कह डाली है ।
जवाब देंहटाएंकुमुद-कुमुदिनी खिले पंक में,
शीतलता होती "मयंक" में,
दीवानी होती है चाहत!
किसने कहा रहो तुम सहमत!!
ख़ुशी के अहसास के लिए आपको जानना होगा कि ‘ख़ुशी का डिज़ायन और आनंद का मॉडल‘ क्या है ? - Dr. Anwer Jamal
क्यों बैठे गुमसुम उपवन में,
जवाब देंहटाएंकलिका बनकर खिलो चमन में,
नाहक ही होते हो आहत!
किसने कहा रहो तुम सहमत!! अब ये भी नही कह सकते सही लिखा शास्त्री जी,हा हा हा हा,अच्छी और सच्ची रचना।
बहुत सही लिखा है। खासकर ब्लॉगजगत के संदर्भ में .....
जवाब देंहटाएंचलिये इसी बात पर सहमत,
जवाब देंहटाएंसंग रहें यदि नहीं संग मत।
बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंसहमति कहने से नहीं होती..वह तो दिल से होती है और वह है
जवाब देंहटाएं-----देवेंद्र गौतम
कुमुद-कुमुदिनी खिले पंक में,
जवाब देंहटाएंशीतलता होती "मयंक" में,
दीवानी होती है चाहत!
किसने कहा रहो तुम सहमत!!
...दीवानगी में कौन सलामत रह पाता है...
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
कुमुद-कुमुदिनी खिले पंक में,
जवाब देंहटाएंशीतलता होती "मयंक" में,
दीवानी होती है चाहत!
किसने कहा रहो तुम सहमत!!
यही ज़िन्दगी का सत्य है कि सबको सहमत रखा भी नही जा सकता…………बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
आज कुछ अलग से अंदाज़ में आपकी रचना पढने को मिली ... विचारणीय पोस्ट
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह कभी 'रूप' कभी 'मयंक' तो फिर 'चन्द्र' भी तो होंना चाहिये.मैं तो आपकी पंक्तियों को ऐसे पढूंगा
जवाब देंहटाएंकुमुद-कुमुदिनी खिलें पंक में,शीतलता होती'चन्द्र'में
दीवानी होती है चाहत!किसने कहा रहो तुम सहमत!!
अब आप सहमत हो या न हों शास्त्री जी,हमने तो अपनी बात लिख दी है.
जो मन में आता कह जाते,
जवाब देंहटाएंहम हँसते-हँसते सह जाते,
Very Beautifully written... Thanks for Sharing this Poem with us Shastriji
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (30-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
पता नही जी, हम ने तो नही कहा किसी से कि ...तुम सहमत हो:)
जवाब देंहटाएंक्यों बैठे गुमसुम उपवन में,
जवाब देंहटाएंकलिका बनकर खिलो चमन में,
नाहक ही होते हो आहत!
किसने कहा रहो तुम सहमत!!
bahut hi badiyaa baat kahi aapne.saarthak rachanaa.badhaai aapko.
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंवाह यह भी सुंदर रचना है आपकी.
जवाब देंहटाएंक्यों बैठे गुमसुम उपवन में,
जवाब देंहटाएंकलिका बनकर खिलो चमन में,
नाहक ही होते हो आहत!
किसने कहा रहो तुम सहमत!!
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! लाजवाब रचना!
bahut manmohak rachna hai.ati sunder.
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंकुमुद-कुमुदिनी खिले पंक में,
जवाब देंहटाएंशीतलता होती "मयंक" में,
दीवानी होती है चाहत!
किसने कहा रहो तुम सहमत!!
बहुत सुंदर...
waah ! kya baat hai !
जवाब देंहटाएंकोमल मन पर बोझ लादकर,
जवाब देंहटाएंउड़ न सकोगे नीलगगन पर,
नहीं आपके बस की मेहनत!
किसने कहा रहो तुम सहमत!!
आज की रचना वाकई मै अनोखी है शास्त्री जी ?
कोमल मन पर बोझ लादकर,
जवाब देंहटाएंउड़ न सकोगे नीलगगन पर,
नहीं आपके बस की मेहनत!
किसने कहा रहो तुम सहमत!!
हम तो अपनी बात कहते हैं...सहमत होना जरुरी नहीं...
कोमल मन पर बोझ लादकर,
जवाब देंहटाएंउड़ न सकोगे नीलगगन पर...
bahut sunder aur sarthak panktiyaan...
"कुमुद कुमुदनी खिले पंक में "बहुत खूब बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
आग दिलों में बनकर बसते,
जवाब देंहटाएंअंगारा से खुलकर हँसते,
कुछ तो दिखला देते हिम्मत!
किसने कहा रहो तुम सहमत!!
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ये तो अपने मन की बात है कोई सहमत न भी हो तो क्या अपनी अभिव्यक्ति बदल जाती है. वह भी कह डालते हैं जो आप नहीं सुनना चाहते.
जवाब देंहटाएंकिसने कहा रहो तुम सहमत ... बहुत अच्छे भाव हैं इस सुंदर रचना में । शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंवाह! प्रेरणा जगाती और जोश का संचार करती पंक्तियाँ ! आभार!
जवाब देंहटाएं