जिनके बँगलों में रहें, सुन्दर-सुन्दर श्वान। उनको कैसे भायेंगे, निर्धन,श्रमिक,किसान।। जन-गण-मन को भूलकर, भरते खुद का पेट। मक्कारों ने कर दिया, भारत मटियामेट।। राजनीति है वोट की, खोट-नोट भरमार। पढ़े-लिखों को हाँकते, अनपढ़, ढोल-गवाँर।। बढ़ी हुई मँहगाई से, जन-जीवन है त्रस्त। बैठे ये सरकार में, होकर कितने मस्त।। बिन ईंधन चलती वहीं, बाइक मोटर-कार। साईकिल से जाइए, गाँव-गली-बाजार।। |
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रविवार, 15 मई 2011
"पाँच दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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dr.saab namaste ji 5 dohe bahut hi aachhe lage sadhuwad
जवाब देंहटाएंइतना सच भी मत लिखिए शास्त्री जी ... 'युवराज' नाराज़ हो जायेंगे !
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (16-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
यथार्थ उजागर करते दोहे.
जवाब देंहटाएंबढ़ी हुई मँहगाई से, जन-जीवन है त्रस्त।
जवाब देंहटाएंबैठे ये सरकार में, होकर कितने मस्त।।
sach kaha aapne janab .
श्वान तो हमारे घर में भी हैं, पता नहीं गरीबों का दर्द समझ में आयेगा या नहीं।।
जवाब देंहटाएंseedhee,sachchi baat.
जवाब देंहटाएंसमसामयिक दोहे... कहाँ सरकार पार फरक पड़ता है इन दिनों...
जवाब देंहटाएंपांच दोहों में शास्त्री जी,आपने किया कमाल
जवाब देंहटाएंकच्चा चिठ्ठा खोल सभी का,खूब बताया हाल
सुन्दर शिक्षा देकर आपने हमें किया है निहाल
साईकिल पर चलें तो, सेहत से जीवन हों खुशहाल
बढ़ी हुई मँहगाई से, जन-जीवन है त्रस्त।
जवाब देंहटाएंबैठे ये सरकार में, होकर कितने मस्त।।
यथार्थ .......
बिन ईंधन चलती नहीं, बाइक मोटर-कार।
जवाब देंहटाएंसाईकील से जाइये, गाँव गली बाजार।।
गाँव गली बाजार, मगर साईकल ना छोड़ें
पलक झपकते चोर, उसे भी लेकर दौड़ें
हा हा बहुत जबरदस्त शास्त्री जी
kyaa baat hai saari duniya ko in dohon me bhr daala hai behtrin behtrin mubark ho ...akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंत्रस्त होने की इंतिहा है
जवाब देंहटाएंatoot sachchaai se paripoorn dohe.atiuttam.maja aa gaya padhkar.
जवाब देंहटाएंआज की परिस्थिति पर अच्छे दोहे ... अब तो लोग साईकिल पर चलें तो बेहतर होगा .. पेट्रोल के दाम जो बढ़ गए हैं .
जवाब देंहटाएंसही कहा , अब साईकल का ही ज़माना आ गया है ।
जवाब देंहटाएंजिनके बँगलों में रहें, सुन्दर-सुन्दर श्वान।
जवाब देंहटाएंउनको कैसे भायेंगे, निर्धन,श्रमिक,किसान।।
sahi baat babu ji...bahut khoob doohe..aabhar
राजनीति है वोट की, खोट-नोट भरमार।
जवाब देंहटाएंपढ़े-लिखों को हाँकते, अनपढ़, ढोल-गवाँर।।
हम भी तो अपना लाभ देख कर इन के आगे जी हाजूरी करते हे, काम निकलने पर इन्हे गालिया देते हे,
अति सुंदर रचना धन्यवाद
har doha lajwab....
जवाब देंहटाएंसुन्दर.....समसामयिक दोहे
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण सटीक रचना ...आभार
जवाब देंहटाएंगुरु जी,
जवाब देंहटाएंयही राजनीति है!
man mohak dohe..:)
जवाब देंहटाएंराजनीति है वोट की, खोट-नोट भरमार।
जवाब देंहटाएंपढ़े-लिखों को हाँकते, अनपढ़, ढोल-गवाँर।।
बिल्कुल सही लिखा है आपने! सच्चाई को आपने बखूबी प्रस्तोत किया है! हर शेर लाजवाब लगा!
वाह ... बहुत खूब कहा है आपने ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छे लगे दोहे....
जवाब देंहटाएंसाईकिल से जाइए, गाँव-गली-बाजार।।
जवाब देंहटाएंकसरत भी और ईंधन की बचत भी ।
हर दोहा विचारणीय और सुंदर । शुभकामनाएँ ।
साइकल से तो जाएँ पर रास्ता भी तो बताएँ!
जवाब देंहटाएं