तन्द्रिल आँखों में मधुरिम से, स्वप्न सलोने लाती हैं।। निन्दिया में आभासी दुनिया, कितनी सच्ची लगती है, परियों की रसवन्ती बतियाँ, सबसे अच्छी लगती हैं, जन्नत की मृदुगन्ध हमारे, तन-मन को महकाती है। तन्द्रिल आँखों में मधुरिम से, स्वप्न सलोने लाती हैं।। दिखा दिया है कोना-कोना, घुमा-घुमाकर उपवन में, बिछा दिया है सुखद बिछौना, अरमानों के आँगन में, अब तो दिन में भी आँखों की, पलकें बन्द हो जातीं हैं। तन्द्रिल आँखों में मधुरिम से, स्वप्न सलोने लाती हैं।। दबे पाँव वो आ जाती हैं, बिना किसी भी आहट के, सुन्दर सुमन खिला जाती हैं, वो अलिन्द में चाहत के, चम्पा की कलियाँ बनकर वो, मन्द-मन्द मुस्काती हैं। तन्द्रिल आँखों में मधुरिम से, स्वप्न सलोने लाती हैं।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शनिवार, 21 मई 2011
"गीत-...मन्द-मन्द मुस्काती हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
बहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत खूबसूरत कविता ......तन्द्रिल आँखों में मधुरिम से ,स्वप्न सलोने लाती हैं ....beautiful ...वाह ....
जवाब देंहटाएंआप के ब्लॉग में follower बनने का लिंक नहीं है क्या ???
अजित
shrangar ras me doob kar likhi hai yeh adbhut rachna.swapn aur kalpana ki anokhi udaan hai.
जवाब देंहटाएंनिन्दिया में आभासी दुनिया, कितनी सच्ची लगती है,
जवाब देंहटाएंपरियों की रसवन्ती बतियाँ, सबसे अच्छी लगती हैं,
बहुत खूबसूरत कविता.........
निन्दिया में आभासी दुनिया, कितनी सच्ची लगती है,
जवाब देंहटाएंपरियों की रसवन्ती बतियाँ, सबसे अच्छी लगती हैं,
जन्नत मृदुगन्ध हमारे, तन-मन को महकाती है।
तन्द्रिल आँखों में मधुरिम से, स्वप्न सलोने लाती हैं।
आपका फ़ोटो सामने न हो तो कोई यह नहीं कह सकता कि इतनी सारी रचनाएं इतनी गति के साथ लिखने वाला एक उम्रदराज़ आदमी है। आपके कलाम के साथ आपकी गति और ऊर्जा भी प्रशंसनीय है।
कमाल का भाव और सुंदर प्रभाव !
धन्यवाद !
जागरण जंक्शन की नई सुविधा है 'Best Web Blogs'
दबे पाँव वो आ जाती हैं, बिना किसी भी आहट के,
जवाब देंहटाएंसुन्दर सुमन खिला जाती हैं, वो अलिन्द में चाहत के,
बहुत सुंदर भावों से सजी रचना ...कोमल अहसासों को सामने लाती है ....आपका आभार
बहुत खूबसूरत कविता| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंनिन्दिया में आभासी दुनिया, कितनी सच्ची लगती है,
जवाब देंहटाएंपरियों की रसवन्ती बतियाँ, सबसे अच्छी लगती हैं,
जन्नत की मृदुगन्ध हमारे, तन-मन को महकाती है।
तन्द्रिल आँखों में मधुरिम से, स्वप्न सलोने लाती हैं।।
बहुत ही खूबसूरत रचना ...
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) ji aapaki rachana mand-2..ne naturopath ko natur ki sair karwadi sir sadhuwad swikar kare sir
जवाब देंहटाएंनिन्दिया में आभासी दुनिया, कितनी सच्ची लगती है,
जवाब देंहटाएंपरियों की रसवन्ती बतियाँ, सबसे अच्छी लगती हैं,
जन्नत की मृदुगन्ध हमारे, तन-मन को महकाती है।
तन्द्रिल आँखों में मधुरिम से, स्वप्न सलोने लाती हैं।।
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
सुंदर, सरस गीत।
जवाब देंहटाएंबढ़िया गीत!
जवाब देंहटाएंsurmayee geet....
जवाब देंहटाएंदबे पाँव वो आ जाती हैं, बिना किसी भी आहट के,
जवाब देंहटाएंसुन्दर सुमन खिला जाती हैं, वो अलिन्द में चाहत के,
चम्पा की कलियाँ बनकर वो, मन्द-मन्द मुस्काती हैं।
तन्द्रिल आँखों में मधुरिम से, स्वप्न सलोने लाती हैं।।
kyaa khub surt baat kahi he --
स्वप्न सलोने यूँ ही सजते रहें।
जवाब देंहटाएंउत्तम गीत...
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत सुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंनिन्दिया में आभासी दुनिया, कितनी सच्ची लगती है,
जवाब देंहटाएंपरियों की रसवन्ती बतियाँ, सबसे अच्छी लगती हैं,
बहुत खूबसूरत कविता.........
बेहतरीन...
जवाब देंहटाएंनिन्दिया में आभासी दुनिया, कितनी सच्ची लगती है,
जवाब देंहटाएंपरियों की रसवन्ती बतियाँ, सबसे अच्छी लगती हैं,
जन्नत की मृदुगन्ध हमारे, तन-मन को महकाती है।
क्या कह रहें है भाया जी आप.लगता है भाभी जी को नहीं पता कि 'आपको परियों की रसवंती बतियाँ अब सबसे अच्छी लगती हैं'. सब छिपा छिपा कर ही तो नहीं चल रहा न.
आपका 'रूप'तो अब निखर निखर सब को लुभा रहा हैं.
शांत मन को भी तरंगित कर झुमा झुमा रहा है.