ठिठुरन से मित्रता
भास्कर ने जोड़ ली।
निर्धनता खोज रही
आग के अलाव,
ईंधन के बढ़ गये
ऐसे में भाव।
जंगलों का दोहन,
ठण्ड से काँप रहा
कोमल बदन,
कूड़े से पन्नियाँ
बीन रहा बचपन।
कुहरा तो एक दिन
छँट ही जायेगा.
उसके बाद सूरज भी
गर्मी दिखायेगा।
सर्दी में कम्पन,
गर्मी में स्वेदकण
झेलना जरूरी है.
नून, तेल-आटे को
लाना मजबूरी है।।
बहुत सही कहा शास्त्रीजी...
जवाब देंहटाएंसर्दी में कम्पन,
गर्मी में स्वेदकण
झेलना जरूरी है.
नून, तेल-लकड़ी को
पाना मजबूरी है।
इतनी गूढ कविता आप से अनुभवी ही कह सकते हैं...
Umda kalaam .
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें ||
ghajab ki prastuti.tareef ke liye shabd kam hain.bahut,bahut achcha.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंठंड में उत्साह भी संकुचित होने लगता है।
जवाब देंहटाएं'सुन्दर रचना'
जवाब देंहटाएंjaha ek or apne thand mausam ka varnan kiya hai wahi siyasati logo ki bhi khinchayi ki di hai..
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar or sarthak lekhani
ati sundar rachana hai..
अच्छी रचना,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
सर्दी में कम्पन,
गर्मी में स्वेदकण
झेलना जरूरी है.
नून, तेल-लकड़ी को
पाना मजबूरी है।
बढ़िया ...
जवाब देंहटाएंबाबा नागार्जुन लिखते थे ऐसी कविता.... जनवादी स्वर खो रहा है हिंदी कविता में... बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना बढ़िया लगी,..........
जवाब देंहटाएंaapki is sundar prastuti par mujhe "teen ber khaati thi ve teen ber khaati hain..." yaad aa gaya...
जवाब देंहटाएंbeautiful creation...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर शब्दों में इस समाज में पल रही विषमताओं के वर्ग को ढाला है, इसको कोई भी नकार नहीं सकता है.
जवाब देंहटाएंbehtreen....
जवाब देंहटाएंकल आप की किसी पोस्ट की चर्चा नयी-पुरानी हलचल पर है ...!कृपया पधारें और अपने अमूल्य विचार भी दें ...आभार.
जवाब देंहटाएंसच्चाई को ब्यान करती बहुत ही खूबसूरता एवं सटीक प्रस्तुति बहुत अच्छा लिखा है आपने शुभकामनायें ...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंपरिवेश प्रधान बेहतरीन प्रस्तुति अमीरी गरीबी के बीच का फासला समेटी .
जवाब देंहटाएंkatu saty ka patapekh karti sunder abhivyakti.
जवाब देंहटाएंthandi hawa ke jaisi rachnaa!!
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