आलिंगन के दिवस पर, बुझा लीजिए प्यास। दिन-प्रतिदिन बढ़ता रहे, आपस में विश्वास।१। एक दिवस के लिए क्यों? चुम्बन का व्यापार। जीवनभर करते रहो, मीठा-मीठा प्यार।२। अपनाओ निज सभ्यता, छोड़ विदेशी ढंग। आलिंगन के साथ हो, जीवन भर का संग।३। मानव मानव ही रहें, यही हमारा मन्त्र। वासनाओं के लिए क्यों? ढोंग और षड़यन्त्र।४। |
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रविवार, 12 फ़रवरी 2012
"मीठा-मीठा प्यार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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bahut hi sadagi aapane sachche prem kaa sandesh diya....
जवाब देंहटाएंस्नेह सिंचन में कोई बाधा नहीं .प्रकृत व जीव भी यही कहते हैं ..... रोचक दृश्य व रचना .. साधुवाद सर !
जवाब देंहटाएंवाह …………गज़ब की प्रस्तुति…………गागर मे सागर भर दिया।
जवाब देंहटाएंkya baat hai, bahut sundar !
जवाब देंहटाएंमानव मानव ही रहें, यही हमारा मन्त्र।
जवाब देंहटाएंसुंदर और प्रेरक मंत्र
अपनाओ निज सभ्यता, छोड़ विदेशी ढंग...
जवाब देंहटाएंसच कहते हैं आदरणीय शाश्त्री जी...
सुन्दर रचना.
सादर बधाई.
जीवनभर करते रहो, मीठा-मीठा प्यार... बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंजीवन भर का साथ रहे..
जवाब देंहटाएंमानव मानव ही रहें, यही हमारा मन्त्र।
जवाब देंहटाएंवासनाओं के लिए क्यों? ढोंग और षड़यन्त्र।४
बहुत सुंदर रचना .......
☺ सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना !!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 13-02-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
वाह ||||
जवाब देंहटाएंसही बात कहा है आपने सर ....
बहुत ही सुन्दर ....
बेहतरीन रचना है....
लाजवाब ....
'मानव मानव ही रहें, यही हमारा मन्त्र।
जवाब देंहटाएंवासनाओं के लिए क्यों? ढोंग और षड़यन्त्र'
सरल शब्दों में सुन्दर रचना .
Nice post.
जवाब देंहटाएंbilkul sahi bat kahi hai aapne.chitr bahut rochak hai .aabhar.
जवाब देंहटाएंप्रेम वही है जो हमेशा बना रहें..
जवाब देंहटाएंयह प्रस्तुत करने का आपका अलग और नया अंदाज है।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंbahut badhiyaa guru jee...!!
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना
जवाब देंहटाएंbahut achcha likha aapne .bahut badhaai aapko.
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली का (३०) मैं शामिल की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आपका स्नेह और आशीर्वाद इस मंच को हमेशा मिलता रहे यही कामना है /आभार /लिंक है
http://hbfint.blogspot.in/2012/02/30-sun-spirit.html