धक्का-मुक्की रेलम-पेल। आयी रेल-आयी रेल।। इंजन चलता सबसे आगे। पीछे -पीछे डिब्बे भागे।। हार्न बजाता, धुआँ छोड़ता। पटरी पर यह तेज दौड़ता।। जब स्टेशन आ जाता है। सिग्नल पर यह रुक जाता है।। जब तक बत्ती लाल रहेगी। इसकी जीरो चाल रहेगी।। हरा रंग जब हो जाता है। तब आगे को बढ़ जाता है।। बच्चों को यह बहुत सुहाती। नानी के घर तक ले जाती।। सबके मन को भाई रेल। आओ मिल कर खेलें खेल।। धक्का-मुक्की रेलम-पेल। आयी रेल-आयी रेल।। |
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गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012
"सबके मन को भाई रेल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बच्चों को यह बहुत सुहाती।
जवाब देंहटाएंनानी के घर तक ले जाती।।
अच्छी पंक्तियाँ ...
बहुत सुंदर बाल रचना,
vaah kya rail chalaai hai aapne bachcho ko hi nahi badon ko bhi bahut pasand aai.
जवाब देंहटाएंऐसे गीत पढ़कर बचपन फिर से जी लेता हूं।
जवाब देंहटाएंतार से चलाए जाने वाले सिग्नल की फोटो बहुत अच्छी लगी और कविता तो है ही बढ़िया..
जवाब देंहटाएंआपने तो हमारी विभागीय कविता लिख दी।
जवाब देंहटाएंसुंदर बाल कविता जो किसी पाठ्यक्रम में लगनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंatisundar balkavita photos sundar haen.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बाल गीत
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया।
जवाब देंहटाएंवाह री रेल तेरा खेल
जवाब देंहटाएंsundar baal geet
जवाब देंहटाएंबचपन में पढ़ा था "छुक-छुक रेल ...."
जवाब देंहटाएंआज फिर से बचपन जग उठा !
बहुत सुन्दर रचना !
आभार !
अपने बचपन की याद आ गई जब एक दूसरे के कपडे को पकड कर रेल बनाकर चलते जाते थे ।
जवाब देंहटाएंसुंदर बाल गीत......
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
आप बाल मन को लुभाने में सक्षम हैं.
जवाब देंहटाएंयुवा और बुड्ढों में भी बालपन का
अहसास करवा देते हैं.
बहुत बहुत आभार.